आपसे यही गुज़ारिश है ऋचा, हर रोज आप ही सबेरे चाय बनाया कीजिए...
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हमारे हालत ऐसे थे क्या ही बात करते,
हमने तो आपसे साथ माँगा था
इतना दे दिया कि
इतने की भी जरूरत नहीं थी...-
अब क्या क्या लिखे की किस्सा,
क्या हर रोज,
हर शाम होता है ,
कि निकलती है आह अब सिर्फ तब,
जब दर्द बेशुमार होता है ।-
किताबों से निकले पन्नों को मैंने सीना अब मैंने छोड़ दिया,
मंज़िल तुझे पाने के चक्कर में मैंने चाय पीना तक छोड़ दिया ।।-
बातें तो बहुत थी मग़र अल्फाज़ कहाँ से लाते
इश्क तो बहुत था मग़र ज़ज्बात कहाँ से लाते।-
खोने का कुछ है नहीं, खोना अब है और नहीं,
बचा है रह जाने दो, ले जाना तो किसी को है नहीं
बह जाएंगे सब एक दिन दरिया में अस्थि की तरह
Waqt चल रहा रहा है जैसे मतंग हाथी की तरह
खटखटाते रहिये एक -दूसरे के मन का दरवाजा
बात- मुलाकात हो ना हो आहटें आनी चाहिए
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वक्त अभी भी है संभल जाओ, आगे फिसलन है
हमने साथ चलना सीखा,
फिसलना अभी बाकी था,
बात क्या थी हमारे दरमियान,
क्या कुछ कहना था
यूँ अजनबियों को ना हमारे बीच लाया करो
बात जरा सी भी हुई बे संजीदगी से तो चुभेगी
हमारे यादों को अच्छा है अच्छा ही रहने दो ।।-
कोई भी अच्छी चीज अति अच्छी हो जाती है,
वो ही अति खतरनाक हो जाती है।-
बहन, तुम मुझे पढ़ने क्यूँ नहीं देती अपनी किताबें,
वो आयेंगे कल ले जाने तुम लाख करो मन्नतें,
भाई, ये बात सच है इससे कभी-कभी मैं डरती हूँ,
क़िताबों ने बदली यहाँ कई जिन्दगियां ऐसा सोचती हूँ।
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