छूट गई वो डोर..."
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छूट गई वो डोर..."
टूट गई वो डोर…
जो बांध कर निकली थी किसी अपने घर से,
किसी नई मंज़िल की तलाश में,
कोई मुस्कान लिए निकला था,
कोई अपना आशियाना बसाने चला था।
पर वक्त को कुछ और ही मंज़ूर था…
वो दामन छूटा,
वो अपनों का साथ छूटा,
सांसारिक मोह-माया का बंधन भी टूट गया।
बस कुछ ही मिनटों में…
एक हादसे ने न जाने कितनी ज़िंदगियों को पलट कर रख दिया।
कुछ पल पहले जो चेहरे मुस्कुरा रहे थे,
अब सन्नाटा बन गए हैं।
236 मासूम ज़िंदगियां…
जो अब सिर्फ याद बनकर रह गईं।
वो हॉस्टल की दीवारों में गूंजती बच्चों की चीखें,
जिन्होंने जीवन को अलविदा कह दिया,
उन घरों में अब सिर्फ मातम की चुप्पी है।
मौत हर किसी को आनी है,
पर ऐसी मौत… ऐसा मंजर…
दिल को झकझोर देता है।
एक लहर आई…
सुनामी सी…
जो सब कुछ बहा ले गई।
हर शाम गुजरती है,
पर वो शाम…
जो अपनों के बिना गुजरे,
वो तो जैसे श्मशान बन जाती है।
हे प्रभु…
उन घरों को हिम्मत देना
जिनकी गोद सूनी हो गई,
जिनका चिराग बुझ गया।
हम दुआ करते हैं…
ऐसी शाम फिर कभी न आए इस धरती पर।
तेरी कृपा बरसती रहे,
और जीवन फिर मुस्कुराए।-