Abhishek shukla   (Abhishek Shukla "Abhi")
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वेदना को संवेदना से संवेदना को कलम से उकेरने का प्रयास...😊🙏 7509220066
Joined 20 May 2017


वेदना को संवेदना से संवेदना को कलम से उकेरने का प्रयास...😊🙏 7509220066
Joined 20 May 2017
23 AUG 2021 AT 16:59

दुनिया से मैं छिपता – छिपाता ,
न जाने कब तुझको चाहने लगा
न चाहते हुए भी चुपके से मन को भाने लगा

तुझे देखे बिना न ही नींद आती( इसका मतलब ये नही की सोया नही ) ,
अजीब सा होता है मन जब महसूस होता है तुम्हारे लफ्जों का भाव , ये एहसास कहीं खोने लगा है।
तेरी याद में मन विचलित होने लगा है।

सोचता हूँ ,
क्या था तेरा मेरा रिश्ता ?
जो तुम मुझे याद नहीं करते ,कर भी लिए तो प्रकट नही करते।

काश कुछ होने न होने से अच्छा तुम्हारे मन तक होना हो



ये रिश्ता जो है , तेरे मेरे दरमियां ,
क्या भाव रखता है , क्या अहसास रखता है जो भी रखता है मन सदा तुम्हारे साथ रहता है।

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25 DEC 2020 AT 8:27

अटल स्वरुप ,
अटल क्षवि और काया,
अटल विश्वास से जग को समझाया,
अटल अजात शत्रु की विश्व में बिखरी काया,
अटल शब्द बाण से संयुक्त राष्ट्र को हिलाया,
अटल प्रतिमान से भारत का मान बढ़ाया,
अटल स्वरुप प्रदान कर भारत को विश्व गुरु पथ पर बढ़ाया,
अटल लक्ष्य अटल ओज को अटल स्वरुप में भारत संपूर्ण समाया ।
आदरणीय अटल जी को समर्पित 🙏🙏

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29 SEP 2020 AT 8:18

रात धीरे-धीरे गुजर गई,
चाँद मेरी छत से होकर निकल गया।
उठो आँखे खोलो सूरज दादा की किरणों से खेलों,
इस प्रभात को नवीन आशाओं को पिरो लो ।

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17 SEP 2020 AT 20:16

प्रेम तब खुश होता है जब उसने न्यौछावर किया हो।

अहंकार तब खुश होता है जब कुछ छीन लेता है ।

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17 SEP 2020 AT 11:24

किसी को अपने शब्दों में उतारा कोई उसका मह्त्व कैसे समझेगा,
अपने अल्फाज़ो के श्रृंगार से सजाया कोई कहा समझेगा,
विचोरों में जिया होगा तब तो उकेरा होगा कोई कहा समझेगा,
जब भावों को महसूस किया होगा तब तो पिरोया कोई कैसे समझेगा,
इन शब्दों में हृदय की मूल भावना है इसकी अमूल्यता को कोई कहा समझेगा,
कुछ तो नही मन भावों कोई भला फिर कैसे समझेगा,

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17 SEP 2020 AT 10:52

प्रेम में 
प्रेमी की खामोशी में कितनी गहराई है कास कोई भाप ले,
गहरी साँसों से निकलने वाली उन बातों को कोई नाप ले,
उस स्थिति से जब आपके हिस्से  अनेक रास्तेँ हो और । प्रेम,खामोशी के उन रास्तों में एक नया आयाम हो ,


डर लगता है 
उस स्थिति से जब आपके हिस्से  
खामोशी भी ना हो

नाराज़ हो और नाराज़गी जताने तक के लिए कोई शाम न हो।

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14 SEP 2020 AT 8:54

सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
प्रेम है , मान है, सब का सम्मान है,
सभी रसों की अभिव्यक्ति है,ये हिंदी।
सब भावों का प्रतिमान है , पथिक मैत्री भाव है
सबका गौरव गान है, भारतीय जन मानस की शान है ,ये हिंदी ।
जीवन का दर्पण है , परिप्रेक्ष्य का सहज गुणगान है,
सर्वस्व समेटे स्वयं पथ में ,भारत माँ का अभिमान है,
ये हिंदी।

आप सभी को हिंदी_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

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12 SEP 2020 AT 18:37

फ़ोन पर जब दोनों तरफ सन्नाटा होता है,
उस चुप्पी पर जब एक दूसरे की साँसों को महसूस करते है न
इसे अधिक सुंदर
कोई प्रेम को महसूस करने का साधन नही है।

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11 SEP 2020 AT 19:36

करने निकले सिविल सेवा की तैयारी
था घर की उम्मीदों का बोझ भारी,
जिन विषयों को कभी ढंग से न देखा
आज उन्ही से पक्का नाता जोड़ा,
लाखों की भीड़ में खुद को माना एक सिपाही
डट गए किताबों से मित्रता कर भाई,
इसमे खून पसीना सब एक हुआ
सफलता असफलता से एक बड़ा विवेक हुआ,
क्या होगा जीवन क्या हुआ जीवन इस पर तो लिख सकते पूरी गाथा पर अभी इतना कह सकता हूँ यह आयाम पंख मजबूत कर जाता,
इतने उतार चढाव और रूप दिखाता
असली दुनिया का रूप दिखाता,
एसे भी होते जो रोटी भी खिलाते
कुछ है जो रोटी छीन कर चट कर जाते,
इन आयामों में एक सबलता आती
हर ईमानदार तैयारी करने वाले की खुद बा खुद किस्मत लिख जाती,
कोई बने कलेक्टर कोई कुछ और अच्छा कर जाता,
पर ये तैयारी और उम्मीदों का बोझ हमे नया दर्पण दर्श दिखाता,
हम स्वयं को निहारते अपने अंतर मन में झांकते
किसी की सफलता का ज्ञान किसी की असफलता से सीखा मान सब स्पष्ट कर जाता,
घर से निकले थे ले कर उम्मीदों का बोझ वह लगातार बढ़ता जाता,
कभी कभी बालों का स्थान सपाट मैदान ले जाता
किताबों की दोस्ती में पूरा यौवन ढक जाता,
किताबों से हुई दोस्ती तो फिर कितने मार्ग आगे बना कर पथ पर बढ़ जाता,

घर की उम्मीदें कब मुक्म्मल होगी ये तो समय पर छोड़ते है अभी मेहनत और लगन से नाता जोड़ते है ,

है बहुत कुछ कहने को मन नही करता यही बैठ कर रुकने को पर कभी और कलम चलायेगे सारे आयामों को एक एक कर बतयेंगे।

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10 SEP 2020 AT 0:18

मुश्किल था , मगर कल समाज बँट गया।
बस एक लकीर खींची और सब बिखर गया।।

ठीक वैसे जैसे बाप की संपती बट गई गैरो में।
सब तमासा देख रहे , एक दूसरे को सहमे से ।।

ख्वाब सा लग ता है राम राज्य परिकल्पना से।
देश का मान किस बात से हो बेटी की लाचारी में या बेटे की बर्बादी में।।





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