जिसपे गुजरता हैं वही जानता हैं दोस्त
हम तो सफ़र के मुसाफ़िर
मुसाफ़िर को कहा दर्द होता हैं दोस्त
की वो वादा किया करता था, सात जन्म साथ निभाने का
पर इस सफ़र के मुसाफ़िर को बेवफ़ाई करने कहा आता था दोस्त
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ख़ुद को खोजने में एक अरसा बीत गया
ना मिला मैं ख़ुद को
इसलिए अंजान सफ़र पे खुद को खोजने निकल परा
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समय कहा किसी के लिए रुकता हैं
कौन कहा किस हाल में मिले, किसे कहा पता होगा
की ये साल नया तुम्हारे लिए होगा दोस्त
हमारे लिए तो सिर्फ वक़्त गुज़रा हैं, बात तो अब भी वही हैं
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दो चार क़िताबों को पढ़कर मैंने कुछ ना जाना
गाँव के माहौल में रहकर गाँव का हाल चाल जाना
सुना हैं शहर में किसानों के लिए जंग लड़ी जा रही हैं
हमने तो गाँव में किसानों को पेड़ से लटकते हुए देखा हैं
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चाय का दिवाना लड़का, अब शराब पिने लगा हैं
उसके इश्क़ में पागल रहने वाला लड़का
अब उसे शराब की बोतलों में ढूंढता फ़िर रहा हैं
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ख़ुद को बेवफ़ा कह के उनके कहानी से निकल गए
दिल में अरमान थी उसे पा लेने की
इस अरमान में ख़ुद को क़ब्र में लेटा लिए
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साल बदल गए, दिन बदल गए
घर के हम मेहमान बन गए
की कौन नहीं चाहता माँ के आँचल, पिता के छांव में रहना
पर घर के ज़िम्मेदारी ने हमें सफ़र का मुसाफ़िर बना दिया
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प्रेम तो बेवफ़ा करने वाले को मिल जाती हैं
इश्क़ करने वाले बस शायरी हि लिखते रह जाते हैं
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कभी कोई हमें भी देख ले प्यार भरी निगाहों से
हम भी इश्क़ के ग़ुलाम होना चाहते हैं
कि, कभी किया तो नहीं इश्क़
फ़िर भी इश्क़ के ग़ुलाम होना चाहते हैं
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