मान लूं शर्तें उसकी तो चमक सकता हूं सितारा बनकर।
बस उम्र भर के लिए हमसे आईना छूट जाएगा 'सहज'
अभिषेक सहज-
Poet, Writer, Anchor
बहुत बदनाम हूं मैं, शरीफों की महफ़िल में
उनके कूचे में मेरी गज़ल नहीं मिलेगी तुम्हें।
मयखाने में बैठकर मुझे गुनगुनाते हैं लोग
अखबार में मेरी शोहरत नहीं दिखेगी तुम्हें।
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खोटे सिक्के बहुत कीमती, अशर्फियां बेकार पड़ी हैं
सारी खबरें उनके मन की, सच्ची खबर उदास खड़ी है।
अखबारों में जिनके चर्चे, शहर से लेकर गांव तलक हैं
जनता पूछे, कौन जुगत से ये शोहरत दिन-रात बढ़ी है।
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हर खबर पर अब सियासत का पहरा रहता है
कोई पाले में रहता है, कोई निशाने पे रहता है।
हर्फ़-दर-हर्फ़ दिखाता था जो शहर को आईना
वही अखबार हाकिम की तरफदारी में रहता है।
अभिषेक सहज
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सच को झूठ और झूठ को सच कहता है
जलती लाशों पर भी अब वो चुप रहता है।
जिसे शहर की आवाज़ कहा करते थे हम
अब वो ही अखबार बहुत गुमसुम रहता है।
अभिषेक सहज
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मुझे गिराने की कोशिश में
वो बहुत नीचे गिर गया
दोस्त बना रहा मुसल्सल
पर दुश्मनों से मिल गया-
वक़्त के थपेड़ों ने कड़ा इम्तिहान लिया होगा
मासूम था, यूं ही पत्थर दिल नहीं हुआ होगा
उसने भी किया होगा ऐतबार बेशुमार कभी
साज़िशें मिली होंगी, तभी बदल गया होगा।
अभिषेक सहज
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वक़्त के थपेड़ों ने कड़ा इम्तिहान लिया होगा
मासूम था, यूं ही पत्थर दिल नहीं हुआ होगा
उसने भी की होगी मोहब्बत बेहिसाब कभी
बेवफाई मिली होगी, तभी बदल गया होगा।
अभिषेक सहज
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जब लोग मुझे गिराने की कोशिश में रहते हैं
मेरे हौसले मुस्कुराने की कोशिश में रहते हैं।
नफरत, साजिश, मुफलिसी, जंग और जख्म
ये भी मुझे आज़माने की कोशिश में रहते हैं।
अभिषेक सहज-
तुम मेरी सुधियों में आकर
मुझसे गीत लिखा लेते हो
मेरे मन की सब बातों को
मुझसे सी कहला लेते हो...
जब भी माइक पर होता हूं
तुम होठों पर आ जाते हो
कहते नहीं कभी मुझसे कुछ
लेकिन इश्क जता जाते हो...-