बन जाऊँ मणिकर्णिका जब मैं,
तुम मेरी गंगा बन जाना ।
पहले अपने ग़मों की चिता बिछाना,
उसमें थोड़े दुःखों के घी लगाना,
जब हताशा और ना-उम्मीदी लिपट जाए,
फिर जाकर तुम अपने आँसू जलाना ।
धीरे-धीरे सुलगाना अपनी पीड़ा को तुम,
फिर अपने मोहब्बत के धुएँ उठाना,
पकड़ ले जब अग्नि सुकूँ की तुमको,
फिर तुम विदा होने का उत्सव मनाना ।
दुनिया फिर बातें करेंगी तुम्हारी,
फिर सब तुम्हारे कर्मों का हिसाब लगाएँगे,
तुम आँखें मुदें बस मुझपर ध्यान लगाना,
जाने लगे एक-एक कर के तुम्हारे अपने जब,
फिर आहिस्ता-आहिस्ता तुम मुझमें मिलती जाना ।
बन जाऊँ मणिकर्णिका जब मैं,
तुम मेरी गंगा बन जाना ।
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