Abhishek R N Shukla   (अभिषेक मनिहरपुरी)
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Joined 3 November 2017


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17 APR AT 21:23

" ऊपर वाले की यही मर्ज़ी थी शायद"
लोग तो ऐसे बोलते हैं,
मानों कि जैसे
बाकी लोग तो जो हुआ वो चाहते ही नहीं थे ।

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24 FEB AT 18:34

कुछ यूँ सोचकर भी उसे लेट रिप्लाई देता हूँ मैं,
शायद उसकी कॉल आए और कुछ पल बात हो जाए।

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22 FEB AT 16:43

कभी होता है यूँ भी कि रोने को मन करता है,
माँ की गोद मे सर रखकर सोने को मन करता है।

ये क्या कि उलझे पड़े रहते हैं दुनिया की भीड़ में हम,
कभी-कभी हमको खुद जैसा होने को मन करता है ।

बंजर पड़ी है एक उम्र से आंखों की ज़मीन अपनी ,
कि अब तो इनपर भी नए ख़ाब बोने को मन करता है ।

लोग बहुत हैं साथ मगर सब तमाशबीन ही तो हैं,
खुद की लाश को अब अपने कंधे पर ढोने को मन करता है।

पाया बहुत कुछ पर मिला कुछ भी नहीं " अभी ",
खुद को पाने को अब सब कुछ खोने को मन करता है ।

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14 FEB AT 13:03

नफरत से शुरुआत करने वालों को अक्सर
कहानी के अंत होने तक मुझसे प्रेम हो जाता है ।

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6 JAN AT 18:04

क्या यही जीवन है ?
आईने में देखते-देखते खुद की
आंखों का भर जाना ?

एक चीखते खालीपन से
लड़ते-झगड़ते एक दिन
खुद का ही खाली हो जाना?

या फिर जीवन एक
लंबी सी स्याह रात है,
जो आ तो जाती है,
लेकिन जाती नहीं ?

तुम्हें क्या पता
क्षितिज पर सूरज का डूबना,
तुम तो दूर खड़े साहिल पर
ढलते सूरज को देखते हो ।

तुम्हें क्या पता सूरज की गर्मी,
समंदर की लहरों को पाकर
कैसे शांत हो जाती है।

तुम्हें क्या पता जीवन वो नहीं
जो तुमने समझ लिया
जीवन तो वो था
जिसे तुमने किसी और के लिए
खो दिया ।

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1 JAN AT 11:00

उम्र की वृक्षों को एक और नया डाल लग गया है,
ऐ वक़्त ! तुम्हें भी चौबीसवां साल लग गया है ,
ऐसा करना कि अब थोड़ी जिम्मेदारी तुम भी दिखाना,
सुख - दुख के मध्य तुम भी मध्यस्थ की भूमिका निभाना,
बिखरे जो कोई तो हाथ थोड़ा बढ़ाना,
बहकते हुए को राह पर भी लाना,
बचपन की नादानियों और बुढ़ापे की जंग को,
वयस्कता का एक ढाल लग गया,
ऐ वक़्त ! तुम्हें भी चौबीसवाँ साल लग गया है ।

आँग्ल नववर्ष की शुभेच्छा ।

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30 DEC 2023 AT 23:10

अपनी नज़रों से देखकर तो देखो कभी मुझे,
दूसरों के चश्मे से तो धुंधला ही दिखेगा ।

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22 DEC 2023 AT 21:07

परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि
आप किसके पीछे खड़े हैं ...

महाभारत में कौरव शकुनि के पीछे थे
और पांडव श्री कृष्ण के ...।

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20 DEC 2023 AT 19:15

बन जाऊँ मणिकर्णिका जब मैं,
तुम मेरी गंगा बन जाना ।

पहले अपने ग़मों की चिता बिछाना,
उसमें थोड़े दुःखों के घी लगाना,
जब हताशा और ना-उम्मीदी लिपट जाए,
फिर जाकर तुम अपने आँसू जलाना ।

धीरे-धीरे सुलगाना अपनी पीड़ा को तुम,
फिर अपने मोहब्बत के धुएँ उठाना,
पकड़ ले जब अग्नि सुकूँ की तुमको,
फिर तुम विदा होने का उत्सव मनाना ।

दुनिया फिर बातें करेंगी तुम्हारी,
फिर सब तुम्हारे कर्मों का हिसाब लगाएँगे,
तुम आँखें मुदें बस मुझपर ध्यान लगाना,
जाने लगे एक-एक कर के तुम्हारे अपने जब,
फिर आहिस्ता-आहिस्ता तुम मुझमें मिलती जाना ।

बन जाऊँ मणिकर्णिका जब मैं,
तुम मेरी गंगा बन जाना ।

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12 DEC 2023 AT 22:56

जलते-जलते पानी से बादल कैसे हो जाते हैं,
माँ ! लड़के इश्क़ में अक्सर पागल कैसे हो जाते हैं ।

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