Abhishek R N Shukla   (अभिषेक मनिहरपुरी)
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Joined 3 November 2017


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Joined 3 November 2017
8 JUL AT 16:19

सुलझी-सुलझी सी कोई पहेली सी है,
ये जिंदगी जैसे कोई सहेली सी है,
मानती है कभी तो कभी सताती भी है,
अच्छा क्या है बुरा क्या है ये बताती भी है,
कैसे भी हो हालात सबमें हाथ थाम लेती है,
पूछूं जो कौन हो तो "जिंदगी" का नाम लेती है,
हर नाज़ुक दौर में समझदारी से काम लेती है,
इसलिए तो मुझको मुझसे भी अधिक होशियार लगती है,
रूठूँ कितना भी मैं इससे पर,ये मुझसे वफादार लगती है,
कड़वे आंवलों के मुरब्बे में पड़ी मीठी चाशनी सी है,
ये ज़िंदगी जैसे कोई सहेली सी है ।

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14 MAR AT 16:45

बचा कर हमने थोड़ा सा गुलाल रखा है,
पुरानी यादों को संभाल रखा है,
आओ आकर दहन कर दो सबको,
जो भी वहम दिल में पाल रखा है,
जो कहना है कह कर बहा दो रंगों के संग,
किस बात का आखिर मलाल रखा है,
हम रंग लगाएं तुम गले लगाओ,
इतनी सी बात पर सारा हाल रखा है,
अच्छी नहीं लगती दूरियाँ अपनों में,
क्यों दिल में नफरत का जाल रखा है,
आओ गले मिल कर मिटाओ दूरिया सारी ,
जिसके लिए बचा कर ये गुलाल रखा है.

होली की अनेकानेक शुभकामनाएँ .

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14 JAN AT 11:17



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ये रहीं मेरी "दूरियों" पर 3 "पंक्तियां".

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18 NOV 2024 AT 15:11

ये क्या हुआ
कि दिल पत्थर हो गया है अब
की अब तो कोई आए
जो मेरे सीने पर अपने हाथ रखे
और इसे फिर से दिल कर दे
कि कोई आए जो बंजर सी पड़ी
इन आँखों में कोई ख्वाब बोए
कोई हो जो टोके मुझे
मेरी कपड़ों पर पड़े सलवटों के लिए
कोई हो जो गले लगे तो
मुझे खुद सा कर दे अपनी खुशबू से
कोई हो जो
फिर से हँसना सिखाए
मुझमें मोहब्बत
कम होती जा रही है
कोई हो जो
उड़ेल दे प्रेम मुझमें कहीं से लाकर
और फिर ज़िंदा कर दे मुझे
जैसे कोई बच्चा ज़िंदा रहता है
बेपरवाह सा अपनी ही
दुनिया में खोया सा।

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31 OCT 2024 AT 13:32

झालर की टिमटिमाहट के बीच
थोड़ी जगह खाली होगी,
तुम कुम्हार से दीये ले आना
उसके घर भी तो दीवाली होगी ।

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31 OCT 2024 AT 13:15

अमावस्या की कालिमा में कुम्हार के चाक का घेरा होगा,
दीपक जब भी जलेगा उसके नीचे अंधेरा होगा ।

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10 OCT 2024 AT 19:08

It's okay to be alone
In your story
Instead of being with the wrong person

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20 SEP 2024 AT 20:42

बंद कमरों में सोने वाले
क्या जानें,
सपने बोना क्या होता है,
चार -दीवारी ,
आधी खिड़की,
एक दरवाजे में खोने वाले
क्या जाने,
अम्बर होना क्या होता है।

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19 SEP 2024 AT 22:16

नदियों की अस्थिरता,
और उनकी चंचलता ने,
नदियों को
स्त्रीलिंग बना दिया,
जबकि किसी पुरुष के,
समान स्थिर स्वभाव
गहरी गंभीरता ,
समेटे होने के कारण
सागर पुल्लिंग हो गए।

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17 APR 2024 AT 21:23

" ऊपर वाले की यही मर्ज़ी थी शायद"
लोग तो ऐसे बोलते हैं,
मानों कि जैसे
बाकी लोग तो जो हुआ वो चाहते ही नहीं थे ।

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