दिन भर की
थकान के बाद
रात के तीसरे पहर में
नींद टूटती है
तुम्हारी याद से
और फिर
उम्र भर नींद खो जाती है
सातों जनम की कसम के तले ...।।
थककर सो जाने
और
सोकर थक जाने के बीच
सुकून की नींद आएगी एक दिन
और उस नींद से
नहीं उठेंगे हम दोबारा !!-
अब हमें नींद भी नहीं आ रही है
अब न कहना मोहब्बत मुबारक-मुबारक-
हर शहर की शाम तय हो सकती है ,
किसी की नींद नहीं
ठीक वैसे ही जैसे
तुम्हारा चले जाना
तुम्हारे हाथ में था ।
मेरा एकाकीपन ,
मेरी शून्यता
और कविता
नहीं कर सकते तुम नियंत्रित....-
जिन्दगी दुःख का
दूसरा नाम तो नहीं ...
अपने दिल में रहा हो कोई
वो गुमनाम तो नहीं ....
अश्क लिखते हो
आसान तो नहीं होगा
आँसू पी जाना कब तक सीखोगे
इससे आराम तो नहीं होगा...
तुम्हें उम्रभर चाहना हमें मंजूर है
इससे बेहतर कोई काम तो नहीं होगा...-
कितना भी अच्छा चेहरा हो
नकाब सबको खामोश कर देता है
ठीक उसी तरह से
कितने भी अच्छे वक्ता हो हम
यह मतलब नहीं करता
तुम्हारा सामने आना
मुझे निःशब्द कर देता है ।।
आँख से बात भी होती है
ये बात मुझे कभी बात की तरह
पता नहीं चली
पर कितना अद्भुत् होता है
यह संवाद
जब मौन दोनों के अधरों पर होता है
और आँखें बातें करती जाती हैं
बाद में
यही आँखें आँसुओं से भर भी जाती हैं
मौन एक अभिव्यक्ति है
आँसू उसके माध्यम
और हम हर बार हो जाते हैं
इसकी गिरफ्त में ।।
AbhishekMishra//25-11-2021//-
बीत जाना
सृष्टि का शाश्वत् सत्य है ;
गम - खुशी , दिन - रात
महीने , साल
समय और नियति से बीतते हैं ।।
पर तुम्हारा चले जाना
बीत जाना बिल्कुल नहीं ;
उसके बाद नहीं बीतता कुछ
जीवन ठहराव ले लेता है ।।-
जब प्रेम की पिच पर
वो मुस्कान वाली गेंद
फेंकते है
हमारा हृदय
स्टम्प की गिल्लियों की तरह
बिखर जाता है
हम क्लीन बोल्ड नहीं होते
क्योंकि
प्रेम के क्रिकेट में
हेड विकेट हो जाने का
कुछ मजा ही
अलग है .....
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मन अशांत है
निर्जनता की खोज में
जाना चाहता है
बहूत दूर
इन गाड़ी मोटरों की आवाजों से
आदमी की चिल्लाहटों से
आदमी अब फिर से
जानवर होना चाहता है
फिर से वही विचार शून्यता
ताकि विचारों का फिर से सम्मान हो सके
ईर्ष्या द्वेष छद्मता कपट झूठ गुस्सा
ये सब पा सकें कुछ दिन की छुट्टी
ठीक कमप्यूटर के साफ्टवेयर की तरह
नए वर्जन की खोज में
शायद फिर से सबकुछ सही हो जाए....-
शज़र की पत्तियों के जैसे
जिन्दगी की धूप से
बचाती हुई छाँव हो तुम
किसी सुनसान रास्ते में
बसर करने खातिर
दूर से नजर आता
एक गाँव हो तुम
सीढ़ियों से लड़खड़ाते हुए
जिन्दगी धीरे धीरे बिताते हुए
बस पिछले दिनों की
तलाश में चुप्पी साधे हुए हम
जा रहे हैं दूर तक
फिर वापस मुड़कर देखने की
आदत नहीं जाती
सुनसान रास्ता
अकेला पथिक
अमावस की रात
एकाएक पीछे मुड़कर देखने पर
तुम्हारा दूर तक नामोंनिशाँ नहीं
तुम अब इतिहास हो
मेरा पीछा अब तुम नहीं
तुम्हारी यादें कर रही हैं .....
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