Abhishek Mishra   ('Parashar')
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Joined 3 April 2020


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14 HOURS AGO

इगो मत दिखाओ
इधर लंबी लाइन है
तू नहीं है, पर सबकुछ तो
बिल्कुल फाइन है
आते जाते रहो
दरवाजे पे नहीं
धक्का मुक्की होगी
आगे वेलेंटाइन है
इगो मत दिखाओ
इधर लंबी लाइन है
एक ने दिल को तोड़ा
तो क्या रोता है बच्चे
हँस ले, गा ले छोटी
तेरी लाइफ लाइन है
इगो मत दिखाओ
इधर लंबी लाइन है

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15 HOURS AGO

थोड़ी सिरफिरी हो गई
अपनी मर्जी की होकर भी
उसकी चाहत में खो गई
बंधे है उसकी धड़कन से
अपनी धड़कन तो खो गई
हम तो जागा ही करते हैं
क्या पता रात कब हो गई
जिंदगी शायरी हो गई
थोड़ी सिरफिरी हो गई

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22 HOURS AGO

तुम हमारे दर्द में
हमको नज़र आए
कोई नहीं, वीरान था
दिल पे मेरे छाए
राह में मेरी न जाने
कौन सी मुश्किल
तुम हुए जो साथ
मंजिल भी हुई हासिल
ये फिजाएं ये शमां
वक्त का ये कारवां
ढल रहे इस चांद को
रोक ले कोई यहां
हम भी मुसाफ़िर हैं
मुसाफ़िर और हो तुम भी
बोल अब चलना कहां है?
है शमां अपना!

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20 MAY AT 21:08

पतझड़ में टहनी से
पत्ते लगे रह जाए,
देखा तो नहीं कहीं।
छोड़ कर कोई स्वारथ
पथिक संग आए,
देखा तो नहीं कहीं।
विपत्ति के सम्मुख
कोई खुशी के गीत गाए,
देखा तो नहीं कहीं।
घोर अपमान विष
पीकर भी मुसकाए,
देखा तो नहीं कहीं।
छोटे पंखों के बल पर
कोई आसमान पर छाए,
देखा तो नहीं कहीं।

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20 MAY AT 14:29

नारी और धर्म आपस में
होते हैं पर्याय सदा।
पर युद्धों के पीछे देखो —
नारी या धर्म ही केंद्र बना।

धर्म और नारी के ऊपर
देखे कई स्मारक स्थल,
संवेदित करते बहुतों को —
जाते हैं सब लोग पिघल।

भड़के हैं दंगे इससे,
लाल खून से हाथ हुए।
जाने कौन मरा इस कारण —
दोनों से खेलते हुए।

करनी होती इनकी रक्षा,
गर पीढ़ी को सजोना हो।
इन दोनों को पतन हुआ तो —
जाओगे तुम भी तो खो।

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20 MAY AT 14:13

मानो की श्वेत चंद्र पर
वे केतु जैसे छा गए
शत्रु का रुधिर पीने
कपाल लेकर आ गए
फड़क रही उनकी भुजाएं
इंद्रादि तक घबरा गए
रणभूमि में होने को आहूत
वीर देखो आ गए।
यम फंद जैसे खड्ग लेके
भूमि पर तलवार टेके
सामने कोई तुक्ष हो
या सामने कोई खास हो
विजय को सब कुछ सहेंगे
क्यों न वह बस त्रास हो
यो खड़े पर्वत हो जैसे
गज यूथ तक शर्मा गये
रणभूमि में होने को आहूत
वीर देखो आ गए।।

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20 MAY AT 10:16

सामने थे तो गुप चुप सा था
दूरी में याद किया करता है!

मनमर्जी के चक्कर मे ये
नफ़रत मोल लिया करता है!

यह एक खिलौने के जैसा है
चाभी रोज भरा करता है

तन्हाई में आकर अक्सर
तेरे लिए दुआं करता है

इसकी बातें जरा कठिन है
पल पल में बदला करता है

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20 MAY AT 10:04

पंख खोलकर आसमान कि
मनचाही सैर जरूर करते हैं परिंदे!
मगर घोसले में जो उनके नन्हें बच्चे है
उनके लिए वापस लौट कर आते हैं!
क्यों की लगाव उन्हें खीच लाता है
ध्यान देने की बात है
"खुल कर जियो! मगर अपनों को भूल कर नहीं!"

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20 MAY AT 10:00

जब से वो ख़ुदग़र्ज़ बना
हमने भी तरसना छोड़ दिया

अजीब वो कैसा प्यार था
जो दो पल में मुख़ मोड़ लिया

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20 MAY AT 9:55

सिर्फ़ लड़कियों को फॉलो करोगे
क्या हम लड़कों के टैलेंट की कोई कीमत नहीं?

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