तुझे छोड़ कर जाना कहां आसान था,
कुछ रिश्तों को आखिर टूटने से बचाना था।
छुटते पिंजरे का किसे गम नहीं
आते तुफान से मुझे अपना घर भी बचाना था।
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शायरों की बस्ती में गम के ही पहरे है
थोड़े तुम ठहरे हो थोड़े हम भी ठहरे हैं
जो सुन ना पाए दिल की बातें कोई ग़म नहीं
आखिर तुम भी बहरे हो आखिर हम भी बहरे हैं।।-
कभी किसी समंदर को रेगिस्तान बनते देखा है....
अफ़सोस कि एक वक्त से आपने हमें भी तो नहीं देखा।
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ये जो शहर रूकता नहीं था कभी ,
कल ठहर सा गया था
परींदे आजाद थे और आदमी कैद था
कुछ लाल छिंटे पड़ी हुई थी सड़को पर
और खौफ से भरी हुई थी आंखे
इंसानियत वहीं घायल पड़ी कराह रही थी
मैं उसे देखते ही पूछ बैठा
" अरे भाई तुम्हारा ये हाल किसने किया,
तुम्हें बचाना तो सबका धर्म था ना"
धर्म सुनते ही वह फफक पड़ा
फिर पता नहीं क्यों अचानक
जोर जोर से हंसने लगा
"धर्म.....हां वे लोग बार बार
धर्म की ही तो दुहाई दे रहे थे"
" तुम जानते हो उस धर्म को"
"कहीं तुम ही वह धर्म तो नहीं "
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चलों एक काम करते हैं
पहले धरती को जगह जगह खोदकर
उसमें फसलें उगाएंगे
फिर उसको निचोड़कर जल निकालेंगे
और फिर उसको तोड़कर घर बनाएंगे
और एक ऐसी ही किसी रात में भरपेट खाकर
अपने घर के छत पर भरे गिलास के साथ
आसमां को निहारते हुए कहेंगे
" ये चांद तु कितना खुबसूरत है। तुझसा यहां कोई नहीं।।"-
When mama introduced me numbers
I had never imagined that
One day my life will turn into some complex equation with imaginary solutions
Which mama missed to teach
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बिखरते ख्वाबों को मुठ्ठी में समेटते समेटते,
बहुत कुछ पीछे छूट गया
छूट गए वो रिश्ते जो कभी पहचान थे मेरे।
वक्त के दौड़ के आगे ,
पापा के कुछ बाल कब अचानक सफेद हो गए
पता ही नहीं चला,
माँ के मासूम चेहरें पर आती झुरियों कों कहाँ
महसूस कर पाया मैं।
चाचा ,मामा ,फुफा जैसे रिश्तें जो कभी अपने थे
कब बदलते दौर के साथ दूर होते गए
पता हीं नहीं चला।
बचपन के वो यार जो कभी सबसे सगे थे
कब भीड़ बन गए पता ही नहीं चला।
वह शहर ,वो मकान जो समेटे था
मेरे लड़कपन को ,
जहाँ कैद थी मेरी अठखेलियाँ,
कब तीर्थ बन गए पता ही नहीं चला।
सचमुच बहुत कुछ बदल गया
बहुत कुछ पीछे छूट गया।।।-
कल मैंने बारिश में इश्क मिला कर चखा
स्वाद कुछ जाना पहचाना सा था .....
अरे हां ये तो आंसु की बूंदें है-
तुम आए और सब कुछ बदल गया
कुछ ऐसा ही बदला था
जब तुम अचानक चले गए थे
ये आना जाना तो वक्त के साथ बदलते रहते हैं
शाश्र्वत रहता है बस तुम्हारा यूं बदल जाना।।-