अगर चाहा है आपने किसी को दिलो जान से
जिसने जगाए थे मोहब्बत आपके भीतर
दिखाए थे खूब हसीन सपने
फिर जगाये थे आपने भी रेशमी उम्मीदें बड़े अरमान से
और अलग रास्ता वो देखने लगे कुछ वक्त के बाद
तो होगा एक अनचाहा लगाव
दर्द से, एक असहनीय पीड़ा से
जिसे शायद ही आप किसी को सुना पाएंगे
कल तक उसके लिए आप सबकुछ थे अब राख बराबर
मुरझाने लगेंगे जिंदगी के फूल
पूछेंगे आप खुद से मैं क्यूँ हूँ? क्या है मेरा अस्त्तित्व?
पर विज्ञान कहता है कि
फूल सदा के लिए नहीं मुरझाया करते
वो उग आते हैं जलाशयों के बीच में भी
पर्वतों के शिखर पर भी-
IIT Kharagpur..... तकनीकी संस्थान का छात्र हूं, कविताओं से बेहद लगाव।
लिखना फ... read more
Slum (स्लम)
कुछ लोग हैं, जो अपनी गाँव से आये बड़े शहरों में
भूख की आग परिवार की आस रोजगार की तलाश में
उनकी भाषा थोड़ी अलग है वो अक्सर मैं को हम कहते हैं
जिस बस्ती में रहते हैं वो, उसे शहर वाले स्लम कहते हैं
जेठ की धूप, पूस की ठंड और भारी बरसात में
दिन भर का काम निपटा, घर पहुँचते रात में
उनकी कार्यो को "सस्ती श्रम" कहते हैं
जिस बस्ती में रहते हैं वो, उसे शहर वाले स्लम कहते हैं
गाँव की कला, लोक संस्कृति को शहरों में लाते हैं
वो अपने सीमित संसाधनों में हर त्योहार मनाते हैं
कथित उच्च श्रेणी,
जिनके पास इन त्योहारों के लिए समय कम होते हैं,
जिन जगहों ने बचाये रखा शहरों में पुरखों की विरासत,
उन जगहों को वो स्लम कहते हैं-
दुनिया को दिखाने के लिए,
हर शख्स का दिल, ख़ुशियों की एक घाटी है |
अंदर से निचोड़ने पर पता लगा,
हर शख्स टूटा और उनका ख़ुशी बनावटी है ||
अलग अलग परेशानियाँ हैं,
बहुतों को परखो, तो एक जैसी कहानियाँ हैं,
अये खुदा ये कैसा दौर आया है !
इंसान बाहर से खुश पर अंदर से मुरझाया है |-
आसमां में तैरते बादल
उन्हें देखकर लगता है,
क्यूँ न हम इन्हीं (बादलों) में से कोई दो हो जाएं !
और जैसे समय के साथ ये गुम हो जाते आसमां में ही
हमदोनों भी दुनिया के नजरों से ओझल हो जाएं !!-
बहुत कुछ हो रहा आजकल
गर्मी के मौसम में, बिन सावन बरसात !
रात तो रात है, भरी दोपहरी में भी तुम्हारी याद !!
तुम्हे मुझे जानना चाहिए, मुझे तुम्हे जानना चाहिए !
पर इसके लिए ये शर्त है कि, हमारी गुफ़्तगू होनी चाहिए !!
भावनाओं के डोर को मजबूत रखना होगा !
ये इश्क़ एक गहरा समंदर है, हमें साथ पार करना होगा !!
बहुत कुछ नहीं है मेरे पास,
शिवाय बेशुमार मोहब्बत और वफ़ादारी के,
मैं झूठ नहीं बोलूँगा की चाँद तारे ले आऊंगा !
बहुत हठ करोगी तो बाजार से आईना ले आऊंगा !!-
निकल तो जाएंगे हम, पर रह जाएंगी कुछ "यादें"
"यादें" जिन्हें हम भूलकर भी याद न करना चाहें
रेलवे स्टेसनों पर ग़रीबी रेखा से नीचे जीने वालों की उमड़ती भीड़ |
ट्रॉली बैग पर बेटे को सुला उसे रस्सी से खिंचती उस माँ की तस्वीर ||
चिलचिलाती धूप में लगातार चलती, फटी हुई एड़ियाँ |
पटरी पर लाशों के बीच कुछ 6-7 सूखी रोटियाँ ||
वो अंतहीन सड़के, वो अंतहीन राहें |
जिन्हें हम भूलकर भी याद न करना चाहें ||
निकल तो जाएंगे हम, पर रह जाएंगी कुछ "यादें"
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चाँद आसमान में था
उसके दो टुकड़े जमीं पर
जो एक दूसरे को मानते थे (चाँद)
दोनों एक दूसरे के अधूरे गाने को पूरा कर रहे थे
अपनी नई नवेली प्यार के समंदर में डूब रहे थे
वो चाँदनी रात
वो प्यारी बात
काश वो वक़्त वहीं रुक जाता
कुछ देर के लिए ही सही, उनका इश्क़ मुक़म्मल हो जाता
~अभिषेक कुमार गौतम
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गुफ़्तगू किया करो चाँदनी रातों में मिल के
दिन के उजाले में प्यार के दुश्मन हैं कई-
जब भी दोस्तों से सच सुनने को आतुर हुआ जाता हूं
मैं उनके साथ अपने शहर के मयखाने चला जाता हूं-
ठीक वैसे ही फिका पड़ा हमारी इश्क़ की लाली !
जैसे तुम्हारे दिए गुलाब के पंखुड़ियां,
होती गयीं गुलाबी से काली !!
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