अधूरी रह जाती हैं,
कुछ पूरी हो जाती हैं।
इश्क़ की कुछ कहानियां,
मीठी यादें दे जाती हैं,
कुछ बहुत तड़पाती हैं।
इश्क़ की कुछ कहानियां,
अमर हो जाती हैं,
कुछ समय में खो जाती हैं।
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"बचपन खो गया"
आज बचपन याद आया,
अंदर के बच्चे को जगाया...
( पूरी कविता caption में पढ़े)-
सुर्य के अंगारो में,
शीतल छांव बनकर,
सर्द भरी रातों में,
लौ बनकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा!-
हुंकार!
ये देश राम रहीम की है,
कृष्ण और करीम की है,
हम सालों से एक साथ रहें,
एक बिल से फिर क्यों अलग होंगे,
तुम लाख हमें अलग कर लो,
हम फिर भी हाथ मिला लेंगे,
तुम लाख हमें दबा लो,
हम फिर भी उठ खड़े होंगे,
हम अब तक चुप बैठे थें,
हम अब चुप नहीं बैठेंगे ,
हाँ! हम चुप नहीं अब बैठेंगे,
हम हुंकार भरेंगे...-
एक अधूरी ख़्वाहिश,
पूरा करते-करते न जाने कितनी हीं,
ख़्वाहिशें अधूरी रह गयी|
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कुछ दिन , कुछ महीने ,
कुछ साल बाद,
जब हम मिलेंगे,
क्या याद रखोगे तुम,
उन छोटे - छोटे लम्हो को
जिसने तुम और मैं को हम बनाया ?
क्या याद रखोगे तुम,
उन तीखे - मीठे नोंक-झोंक को
जिसने हमे अनजान से कुछ और बनाया ?
क्या याद रखोगे तुम,
उन इंतज़ार भरी निगाहों को
जिसने एक पल को कई दिन बनाया?
कुछ याद रखो, न रखो पर
भूल मत जाना उस दिन को,
जो गुजर कर भी कभी न गुजरी,
भूल मत जाना उन नजरों को,
जो आज भी तुम्हारी परछाई ढूंढती है,
भूल मत उन गलियों को,
जो आज भी तुम्हारा इंतज़ार करती है,
भूल मत जाना उस सख्स को,
जिसके लिए वक्त थम सा गया है,
क्या याद रखोगे तुम उसे?
क्या याद रखोगे तुम मुझे?
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