abhishek kumar   (Theincompletes...)
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Joined 25 March 2017


Joined 25 March 2017
1 MAY AT 21:57

इश्क़ का वो मक़ाम भी गुज़र गया
जब होते थे आधे तुम्हारे बिना
अब तो वज़ूद ही नहीं हमारा तुम्हारे बगैर…

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28 APR AT 23:05

जो सीखनी हों तुम्हें
वफ़ाए किसी से
तो मेरे आँसुओ से सीखना
वो तैर तो जाते हैं आँखों में , तुम्हें देख
पर छलकते नहीं..

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22 MAR AT 8:17

बहुत रौशनी है तुम्हारी शख्सियत में
एक जरा छाँव ढूँढ़ते हैं
किसी शहर से चकाचौंध तुम
तुम्हारे दिल का गाँव ढूँढते हैं

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6 MAR AT 8:22

और कितना बदले ख़ुद को तुम्हारे लिये
इतना बदले हम की तुम अब भाते भी नहीं..

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14 FEB AT 8:16


इतना एकान्त भी नहीं चाहिए ऐ ज़िन्दगी
कीं अपनी साँसो की ही आवाज़ शोर लगने लगे

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13 FEB AT 8:04

दिन भागता है
रातें रेंगती है
और छोड़ जाती हैं एक टुकड़ा अंधियारे का
का साथ मेरे ..

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9 NOV 2023 AT 8:38

माँ पोंछ दो फिर अपने आँचल से ज़रा

की बहुत सिलवटें उभर आईं हैं माथे पे मेरे

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26 OCT 2023 AT 8:09

ग़र ढूँढना हो कभी मुझे
तो चले आना अपने बीते “कल” में
हम वही रहते है अपने “आज “ के साथ..

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23 OCT 2023 AT 18:43

बहुत रौशन हैं शामें आपकी आज कल
पर अन्धेरों का कुछ हिसाब अब भी बाक़ी है
बहूत ऊँचीं हैं दीवारें आपके महलों के
पर तिनकों का जवाब अब भी बाक़ी है

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29 SEP 2023 AT 23:49

मिलना मुक़र्रर है हमारा
वहाँ जहां दिशाओं का अन्त होता है
जहाँ धरती की बाँहों में आकाश सिमटता है
उस दिन ना हम होंगे और ना तुम होगे
मगर हम-तुम होंगे

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