आज कल का प्रेम, प्रेम नहीं कोई जंक्शन हो जैसे,
जहाँ से सब भटके मुसाफिर की तरह कोई भी गाड़ी
पकड़ ले रहे हैं।-
ज़िन्दगी में पैसा होना चाहिए के चक्कर में,
पैसे में ज़िन्दगी को उलझा लेते हैं हम सब।-
बदल गया है दौर, अब कोई किसी के बग़ैर आधा नहीं होता
इस दौर के प्रेम में, कोई भी कृष्णा और राधा नहीं होता-
उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे
वो मिरा होने से ज़ियादा मुझे पाना चाहे
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा
ये मुसाफ़िर तो कोई और ठिकाना चाहे
एक बनफूल था इस शहर में वो भी न रहा
कोई अब किसके लिए लौट के आना चाहे
ज़िंदगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा
वो तराना है जिसे दिल नही गाना चाहे
©Dr. Kumar Vishvas | ट्विटर साहित्य-
जहाँ असन्तुष्टि पाप करवाता है
वहीं सन्तुष्टि....जाप करवाता है-
आज तकलीफ़ है तो कल आराम भी मिलेगा
तेरी मेहनत का बेशक़ीमती इनाम भी मिलेगा-
क्या ख़बर किसी को किस हद से गुज़र रहा हूँ
मैं जी रहा हूँ ऐसे, जैसे घुट-घुट कर मर रहा हूँ-
फ़र्क
जो मेरे लिए दुनिया से लड़ जाता था
आज दुनिया के लिए मुझसे लड़ गया-