गली की बत्ती (Street light)
रात भंवर थी सुनसान सी सड़क थी,
उस सुन्न से साये पे एकटक निगाह अटकी थी।
नया नही था कुछ भी था सब वही पुराना,
वही गली, वही मोहल्ला और वही म़यखाना।
एक बात थी ,जो थी अलग इस रात,
गली की थी बत्ती जली इस बार।
देखकर कर उसे दूर से ही मैं मुसकाया,
चलो,किसी का तो नसीब रंग लाया।
पास उसके पहुंचा तो एक ख्याल आया,
एक सुन्न सा सायां मुझे पहली दफा नजर आया।
सोच के जरा अचरज में मैं था
ये कौन था जो आज मेरे संग था
हाथों में जाम लिए की घंटो बात
और बुझ गई बत्ती फिर एक बार।
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