29 NOV 2019 AT 23:38

अहिंसा प्रथमं पुष्पं द्वितीयं करणग्रहः।
तृतीयकं भूतदया चतुर्थ क्षान्तिरेव च॥
शमस्तु पंचमं पुष्पं ध्यानं चैव तु सप्तमम्।
सत्यं चैवाष्टमं पुष्पमेतैस्तुष्यति केशवः॥
एतैरेवाष्टभिः पुष्पैस्तुष्यते चार्चितो हरिः।
पुष्पान्तराणि सन्त्येव बाह्यानि नृपसत्तम॥

अहिंसा पहला, इन्द्रिय-संयम दूसरा, जीवों पर दया करना तीसरा, क्षमा चौथा, शम पाँचवाँ, दम छठा, ध्यान सातवाँ और सत्य आठवाँ पुष्प है। इन पुष्पों के द्वारा भगवान संतुष्ट होते हैं। अन्य पुष्प तो पूजा के बाह्य अंग हैं, भगवान उपर्युक्त आठ पुष्पों से ही पूजित होने पर प्रसन्न होते हैं (क्योंकि वे भक्ति के प्रेमी हैं)।

[देवर्षि नारदजी, कल्याण, संत-वाणी अंक]

-