Abhishek Chauhan   (अभिषेक (nayab_abhi))
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Inst- nayab_abhi
Joined 2 March 2022


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Joined 2 March 2022
13 MAY AT 16:18

क़दम जमीं पर हो, दिलों में सबके सम्राट हो जाना।
आसान नहीं है विराट हो जाना।

बैटिंग में क्लास उसके और आंखों में आग हो।
फिटनेस अम्बेसडर और नियत भी साफ हो।
युवाओं के लिए नया विश्वास हो जाना
आसान नहीं है विराट हो जाना।

दिल जीतने की कला में माहिर भी हो।
दिल में हो अभिमान तो जाहिर भी हो।
अपनी टीम के लिए सबके खिलाफ हो जाना।
आसान नहीं है विराट हो जाना।

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6 MAY AT 10:42

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6 MAY AT 10:37

सैंडल पहनने से तुम्हारा कद ऊंचा हो जाता है और तुम्हारा सौंदर्य बढ़ जाता है, ये तो सबको दिखता है, लेकिन मैं मानता हूं कि सैंडल पहन लेने से तुम्हारा स्वाभिमान बढ़ता है, मनोबल उठने लगता है आसमान की तरफ, जैसे हवाई जहाज उड़ना शुरू करता है बरनौली फोर्स के कारण।
वो अलग बात है कि सैंडल की वजह से उंगलियां मुड़ जाती हैं और एड़ियों में दर्द बढ़ने लगता है लेकिन यही तो वो संघर्ष है जो तुम्हारे आत्मविश्वास में झलकता है और यह तुम्हारे उन तमाम दर्दों से कम होता है जो तुम सिर्फ इस लिए सहती हो कि वो कोई अपना दे रहा है, सिर्फ इस लिए क्योंकि त्याग करना जैसे सिर्फ तुम्हारे व्यक्तिव का हिस्सा है।
त्याग करो, संघर्ष करो लेकिन याद रखो कि कुछ त्याग, कुछ संघर्ष अपने लिए करना भी जरूरी है।
सैंडल पहन कर पुरुष की बराबरी कर लेना शायद ही इस समाज को सुहाता हो, जब तक कि वो सैंडल तुम्हारी खूबसूरती बढ़ा रहा हो न कि आत्मविश्वास, मनोबल और अपने लिए कुछ कर जाने का जज्बा।
तो तुमसे बस यही गुजारिश है कि पहनो सैंडल जब भी तुम्हे किसी से नीचे आंका जाए, तुम्हारे मनोबल को छोटा करने की चेष्टा की जाए और कुचल डालो उन सारी बाधाओं, सारे कंकड़ों को जो बीच आते हैं तुम और तुम्हारी सफलता के।

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28 MAR AT 20:05

इस भंवर जाल से मैं निकलता क्यों नहीं?
दिल बदल जाए पर मन बदलता क्यों नहीं?

घूम फिर कर पहुंच जाता हूं इस दलदल में
भागता रहता हूं इससे मुसलसल मैं
ठोकर लगी है कई बार पर मैं संभलता क्यों नहीं?
इस भंवर जाल से मैं निकलता क्यों नहीं?

ये ज़िल्लत की आदत जाने कब से लगी,
जिंदगी ना कहो बस ये है गंदगी,
खून नसों में मेरे अब उबलता क्यों नहीं?
इस भंवर जाल से मैं निकलता क्यों नहीं?

रोज़ सुधरता हूं मैं रोज बिगड़ जाता हूं,
जाना किधर होता है, चला किधर जाता हूं
दुनियादारी से मेरा मन बहलता क्यों नहीं?
इस भंवर जाल से मैं निकलता क्यों नहीं?

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14 MAR AT 10:33

इस बार फिर से बिना रंग के होली मनाएंगे।
कुछ लोग बस अपने कमरे में पड़े पड़े सो जाएंगे।
काश होलिका में इनके अहंकार और द्वेष भी जल गए होते,
एक बार फिर कुछ लोग सड़कों पे जबरन किसी को भी रंग लगायेंगे।
इनकी टोली के सामने विरोध करना भी आसान कहां है,
कोई गर करे भी विरोध तो "बुरा न मानो होली है" बस यही चिल्लायेंगे।
फिर किसी गलियारे में होली के बहाने स्त्री को हाथ लगायेंगे।
समाज के डर से गर वो कुछ ना कह सकी तो उसका ये फायदा भी उठाएंगे।
खैर, राम आ चुके है लोग वही हैं, राम फिर से आयेंगे।

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7 MAR AT 9:59

ज़माने से इस क़दर इत्तेफाक रखता है वो,
हथेली पर हमेशा ख़ाक रखता है वो।
किरदारों को जिंदा कर देता है अपने ख़ून से सिंच कर,
जुबां और दिल हमेशा साफ रखता है वो।
आंखे दिखती हैं कभी अंगार,कभी फूल के मानिंद,
जब कई बातों के बीच, अपनी बात रखता है वो।

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3 MAR AT 0:00

मेरे साथ तुम गुजारो कुछ दिन, ये गुजारिश है मेरी..
नया-नया किसी को भी मैं अच्छा नहीं लगता।

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27 FEB AT 21:23

I don't know how to give compliments but I can say:

"तुम मेरी जिंदगी में हिंदी जैसी हो।
मां के माथे पर लगी बिंदी जैसी हो।
गंगा और सरस्वती से जो संगम बनाए,
तुम उस पावन कालिंदी जैसी हो..
❣️"

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18 JAN AT 23:07

मैं भागता रहा हमेशा इस जमाने से,
किसी ने बुलाया भी नहीं मुझे बहाने से,
वो नशा ही क्या जो उनकी आंखों से परे हो,
मेरा खैर क्या ही जाता है एक बार आजमाने से।
मुझे बहा ले जाने को उनके आंसु ही काफी हैं,
घर मेरा गिर नहीं जाता बस नींव हिलाने से।
जो पाप कर रहे हो तो जेहन में ये ख़्याल भी रहे।
पाप धूल नहीं जाते बस गंगा नहाने से !

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17 JAN AT 18:35

रुमाल की खुशबू से गुजरा होता रहा हमारा,
हमें उनके जिस्म की तलब कहां थी।

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