सुना है वो हुस्न का खज़ाना है
ऐसे में खुद को चोर बताना बुरा तो नहीं
सुना है नब्ज़ छू के हाल ए दिल बता देती है
ऐसे में खुद को बीमार बताना बुरा तो नहीं
सुना है बातों से फूल झड़ते हैं
ऐसे में खुद को उनका हार बताना बुरा तो नहीं
सुना है चंदन सी महकती है
ऐसे में खुद सांप बताना बुरा तो नहीं
सुना है देख ले तो घायल कर दे
ऐसे हालात में भी, खुद हो दुरूस्त बताना बुरा तो नहीं
सुना है वो फूलों की खुशबू है
ऐसे में खुद को भंवरा बताना बुरा तो नहीं
सुना है खुद को देख के मुस्कुराती है
ऐसे में खुद को उनका आइना बताना बुरा तो नहीं
सुना है लोग आंखें भर कर देखते हैं उन्हें
ऐसे में खुद को उनका काजल बताना बुरा तो नहीं
सुना है इश्क़ करना गुनाह है उनसे
ऐसे में खुद को गुनेहगार बताना बुरा तो नहीं
सुना है पास से गुज़र जाए तो लोग बहक जाते हैं
ऐसे में खुद को उनका इत्र बताना बुरा तो नहीं
सुना है छू ले तो जीना छोड़ दे लोग
ऐसे में खुदखुशी कर जाना बुरा तो नहीं
सुना है शर्म उसकी गुलाम है
ऐसे में हम शर्मसार हो जाएं तो बुरा तो नहीं
सुना है वो अपना हाल ए दिन नहीं बताती है
ऐसे में खुद को उनका ग़ालिब बताना बुरा तो नहीं
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रात गुज़र गई याद में आपके,
गुप्त अंधेरे में चेहरा निहारते,
ज़िंदगी का एहसास हमें उस पल होता,
जब गर्म सांस भी नाम आप हीं का पुकारते ।
सर्द रात थी, लौ थरथारा रही थी,
तन्हाई का एहसास था, पर रूह मुस्कुरा रही थी,
न जाने क्यूं ये आंखें हंस हंस कर रो रही थी,
शायद वो इंतज़ार खत्म करने की गुज़ारिश थी ।
अब ये दिल और धड़कन दो हो गए थे,
अब ये सांस शायद जिस्म को छोड़ के जा रही थी,
अंधेरा तो था हीं चारों ओर,
अब आंखें बस बंद होने को बेकरार थी ।
आंखें बंद हुई और उजाला हो गया,
लगता है रूह को तेरा दीदार हो गया,
अब सांसे तेज़ और दिल धुन में धड़कने लगा,
होठों पर मुस्कान और चेहरा खिलने लगा,
सुना था इश्क को मौत नहीं आती,
यकीन हुआ जब खुद मर के जीने लगा।
दीदार के गुज़ारिश का करिश्मा ये है,
अंजाम-ए-इश्क क्या होता गर इज़हार क़ुबूल हो गया होता ।
मौत भी तेरे सजदे में सर झुकाती है, यकीन हो गया,
चांद भी तेरे नूर से चमकता है, याकीन हो गया,
यूं तो दीवाने बन कर हम भी गलियों में घूमा करते थे,
पर इश्क का भी एक वक्त होता है, यकीन हो गया ।-
जिंदगी के इस सफ़र में हम चलते रहे , मुस्कुराते रहे,
लोगों से मिलते रहे, हसाते रहे।
लम्हा गुजरता गया, ठिकाना बदलता गया,
लोग मिलते गए, बिछड़ते गए और किस्सा बनता गया।
कभी पगडंडियों पर चले
कभी छोटे पत्थरों को लात से मारता गया।
कभी पानी में पत्थरों को फेंक छलछलाता रहा,
कुछ इस तरह मैं जिंदगी की सड़क को अपने कदमों से नापता गया।
सर्दियों में ठिठुरता था पर मन ना घबराता था,
गर्मी की धूप में पसीना मैं रोज़ ही बहाता था,
बरसात में घने बादल जब घुर्राते थे, मैं खुद में छुप जाता था,
जब पड़ता था पानी तो सफर में ठहराव आता था,
सब भींगने के बाद मैं भी संग आंसू बहा लेता था।
मन करता है कहीं रुक के दो निवाले मैं खा लूं
साथ किसी के इस सफर में हो लूं
अकेला यहां तक आया हूं
एक हमसफ़र हो साथ, तो चार कदम इस सफर में मैं और चल लूं।
जब मिला इस हवा को रुख,
तो समझ आया ज़िंदगी का सुख,
सिर्फ़ चलना ही ज़िंदगी नहीं, लक्ष्य होना ज़रूरी है, और ज़रूरी है उसे पाने की भूख।
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गुज़रती हो जब बागों से तो फूलों की खुशबू भी तुम्हारे साथ हो जाती हैं,
इंतज़ार तो बस हमे तुम्हारे हमाम से निकलने का रहता है।
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कुछ खास हैं हममें की जब भी तुम से दूर होता हूं
बारिश होती है
और लोगों को हाल ए दिल भी नही पता चलता।-