तुम्हारा नज़रिया, प्रतिक्रिया, सत्य नहीं बनाता ।
सत्य का सत्यापन है, उसका ‘सत्य’ होना ॥-
दिल के दरवाज़े में ग़र दस्तक हो देना ।
सुनकर देखो वो, जो कह ना सके उनके नैना ॥-
इक फलों की दुकान में,
बड़ा अजब सा नज़ारा था ।
क़ीमत दे रहा था और कोई,
ज़ायक़ा ले रहा,दूर खड़ा, इक बेबस बेचारा था ।।-
मर्द की बेबसी अब क्या कहें,
इन लफ़्ज़ों में बयाँ होती है ।
अक्सर कई मर्दों की इज़्ज़त होती है तब-तक,
बस, जब तक उनकी ज़रूरत होती है ॥-
काली चुनरी ओढ़ रखी है इसने, इक निहायत ही ख़ूबसूरत ।
सोने की छोटे-छोटे दाने भी हैं, ज़री का काम लगता है ।
रात में आसमाँ से धरती, लाजवाब दिखती है ॥-
झूमने लगी है ये ज़मीं, गा रहे कोई तराना ये सितारे हैं ।
जब से तुमने कह दिया, मुस्कुरा कर “आप, हमारे हैं” ॥-
अपनी उड़ान में आसमान की ऊँचाई पर,
साथ ले चलना चाहते हैं कोई मुझे ।
पर तेरे संग रह ज़मीं पर ही,
साथ चलना है, ये कैसे बतलाऊँ तुझे ॥
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यूँ तो खूबसूरत ही थी पहले भी,
पर तूने आके इस ज़िन्दगी को जन्नत बना दिया ॥
गुमाँ था मुझे अपने वजूद में पहले भी ,
मुझे अपना बना के तूने इसे ला-जवाब बना दिया ॥-
अपनी सादगी को, दौलत तो कभी सूरत के आगे निकलते देखा किया अब तक जनाज़ा ।
क्या ख़बर थी, ख़ुदा ने पहले ही, तेरे मुहब्बत से है, इस ‘साहिल’ को नवाज़ा ॥-
लोग जहाँ तुम्हारी तबस्सुम के तराने, ही सुनते रह रहे हैं ।
हमें यहाँ तुम्हारे लफ़्ज़, छिपी खामोशी, बयाँ कर रहे हैं ॥-