Abhishek Bamrara   (अभिषेक - Philiorara)
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Joined 8 August 2017


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Joined 8 August 2017
17 APR 2022 AT 23:13

थोड़ा सुकून, थोड़ी आज़ादी, थोड़ा आसमां मांगा था,
तेरे घोसलें में एक कोना मैंने भी मांगा था।

थोड़ा हट, थोड़ी मुस्कान, कुछ अपना सामान मांगा था,
मैने तो तेरी गागर का थोड़ा पानी मांगा था।

थोड़ी वो तस्वीर दीवार पर टेढ़ी हो गयी है,
हमने तो तेरी परछाई, तेरा आईना मांगा था।

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9 JAN 2022 AT 7:17

आज घर मे गाजर का हलवा बना है,
बना भी बहुत स्वाद है,
पर फिर भी कुछ अधूरा है।

दूध में पकाया है,
चीनी भी बराबर है,
काजू बादाम भी डाल दिये,
इलायची, केसर से सजाया है।

सब कुछ बराबर है,
पर फिर भी कुछ अधूरा है,

घर वही, किचन वही
मैं क्या इसमे मिलाऊँ।
मेरी माँ अब मेरे साथ नहीं,
तो उसके हाथों का स्वाद कहा से लाऊँ।

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16 JUL 2021 AT 23:12

पानी मे घुल गयी वो स्याही जब,
देखो, क्या खूब रंग चढ़ा है।
कलम अब भी सुखी पड़ी है,
पर ये पन्ना भर गया है।

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19 NOV 2020 AT 23:25

तू है यहीं कहीं,
तू है हर कहीं।।
माँ

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29 AUG 2020 AT 6:13

चूल्हे की सुलगती लकड़ी हुँ मै यारा,
तू बस फूंक दे, मैं जल कर राख हो जाऊं।।

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14 AUG 2020 AT 18:31

तीन रंग पैगाम ये देते,
की कैसा ये हिन्दूस्तान है।
विस्व धरोहर बन चुके पर,
कुछ भी ना अभिमान है।।

की चक्र तिरंगे का ये पैगाम देता,
की कैसी हमारी ढाल है,
हाँ मैं ही हिन्दू, मैं ही सिख,
हर जन में ईसू और मुसलमान है।

बॉर्डर पे वो सिपाही खड़ा
तेरी चैन की नींद, प्रमाण है,
वो वर्दी तुमको पैगाम देती,
हर लहू का रंग समान है।

आज़ाद ज़मी ये पैगाम देती,
तुम निडर अपनी आवाज़ रखना,
ये आसमा भी जो नमन करे,
उस भारत का तुम निर्माण करना।

जय हिंद जय भारत।।

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9 AUG 2020 AT 18:25

समझ जाना जो यूँ इशारों में हम बयां कर रहे हैं।
की बहुत कुछ है भीतर जो बोल नही पाते।
क्या मेरी पहचान है कैसे बताऊ,
की छुपा दिया है वो इंसान मैंने खुद के ही अंदर।

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1 JUN 2020 AT 16:30

आज लहरों को छूने का मन हुआ,
ढलती शाम में तब मैं निकल चला,
रेत पर लिखा था कुछ,
ना जाने क्यों वो तेरे-मेरे नाम सा लगा।

विदा किया था जिन यादों को बरसों पहले,
आज, फिर उन पन्नों को छू दिया,
रेत पर लिखा था कुछ,
और मैने लहरों से कहकर,
उन आखर से, फिर रिश्ता जोड़ दिया।

लहरों को छूने निकला था आज,
पर बैर उनसे ही कर लिया,
विदा किया जब किनारे को तब,
वो रेत समेटा और चल दिया,
रेत पर लिखा था कुछ,
और अब, मन मे ही समंदर बन गया।

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25 MAY 2020 AT 13:18

लहजा ऐसा रखते हैं, की सब हो जाये मुरीद,
हर घर मे बटती शीर जहाँ, मेरे भारत की है वो ईद।।

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24 MAY 2020 AT 0:30

सुद्दी नी बोल्दीन यू अपणु यू परायु,
की ब्वे बाबा कु दियूं यू जीवन सारू।।

एकन सम्भाली त दुजान सिखाई,
घुघुती बसूती कु खेल खिलाई।।

काज करदन, क्या घौर क्या बूण,
रोटी मा खिलयूं चा घी और हरयूं लूण।।

बल गढ़वाली माँ की बात ही निरली,
बूबा जी थै देंदिन भारी गाली।

पिताजी भी हमरा कम नी छन,
सौ बातें सीधा एक ही ठोक दीन।।

अद्भुत जोड़ी मेरा माँ पिताजी,
उकीं खुशी मा मेरी दुनियॉ सारी।।

हे देवतों राज़ी खुशी रखयाँ,
मेरा भगवानो थै सैरी खुशी दियां।।

तुम छा अपणा, बाकी सब परायु,
की तुम्हरु दियूं यू जीवन सारू।।

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