थोड़ा सुकून, थोड़ी आज़ादी, थोड़ा आसमां मांगा था,
तेरे घोसलें में एक कोना मैंने भी मांगा था।
थोड़ा हट, थोड़ी मुस्कान, कुछ अपना सामान मांगा था,
मैने तो तेरी गागर का थोड़ा पानी मांगा था।
थोड़ी वो तस्वीर दीवार पर टेढ़ी हो गयी है,
हमने तो तेरी परछाई, तेरा आईना मांगा था।-
From devbhoomi Uttarakhand
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शब्दों का ये मेल अनोखा,
शायद ये... read more
वो धर्म अधर्म की बात नहीं,
है सदियों की एक कुप्रथा,
मुसलमान हो गई टोपी
हिन्दू हो गया टीका।
पढ़ी जो गीता मैंने पाया,
वह जीवन रूपी एक स्मरण है,
कुरान, बाइबिल जो मैंने पढ़ी,
उनमें भी वही अद्भुत वर्णन है।
भगवा, सफेद या हो हरा,
मेरे तिरंगे की वो शान है।
फिर कैसा संकट, ये कैसी विपदा,
आपस मे भिड़े हिन्दू - मुसलमान है।
हाड़ मांस का चोला पहने,
सबका एक ही ईमान है।
फिर क्यों धर्म जाती का भेद यहाँ,
क्यों मर रहा इंसान है।
धर्म जाती की जंजीरों को तोड़,
जब इंसानियत को अपना लेगा,
ईश्वर अल्लाह तेरे ही भीतर,
तू स्वर्ग, धरती पर ही पा लेगा।।-
आज घर मे गाजर का हलवा बना है,
बना भी बहुत स्वाद है,
पर फिर भी कुछ अधूरा है।
दूध में पकाया है,
चीनी भी बराबर है,
काजू बादाम भी डाल दिये,
इलायची, केसर से सजाया है।
सब कुछ बराबर है,
पर फिर भी कुछ अधूरा है,
घर वही, किचन वही
मैं क्या इसमे मिलाऊँ।
मेरी माँ अब मेरे साथ नहीं,
तो उसके हाथों का स्वाद कहा से लाऊँ।-
पानी मे घुल गयी वो स्याही जब,
देखो, क्या खूब रंग चढ़ा है।
कलम अब भी सुखी पड़ी है,
पर ये पन्ना भर गया है।-
चूल्हे की सुलगती लकड़ी हुँ मै यारा,
तू बस फूंक दे, मैं जल कर राख हो जाऊं।।-
तीन रंग पैगाम ये देते,
की कैसा ये हिन्दूस्तान है।
विस्व धरोहर बन चुके पर,
कुछ भी ना अभिमान है।।
की चक्र तिरंगे का ये पैगाम देता,
की कैसी हमारी ढाल है,
हाँ मैं ही हिन्दू, मैं ही सिख,
हर जन में ईसू और मुसलमान है।
बॉर्डर पे वो सिपाही खड़ा
तेरी चैन की नींद, प्रमाण है,
वो वर्दी तुमको पैगाम देती,
हर लहू का रंग समान है।
आज़ाद ज़मी ये पैगाम देती,
तुम निडर अपनी आवाज़ रखना,
ये आसमा भी जो नमन करे,
उस भारत का तुम निर्माण करना।
जय हिंद जय भारत।।-
समझ जाना जो यूँ इशारों में हम बयां कर रहे हैं।
की बहुत कुछ है भीतर जो बोल नही पाते।
क्या मेरी पहचान है कैसे बताऊ,
की छुपा दिया है वो इंसान मैंने खुद के ही अंदर।-
आज लहरों को छूने का मन हुआ,
ढलती शाम में तब मैं निकल चला,
रेत पर लिखा था कुछ,
ना जाने क्यों वो तेरे-मेरे नाम सा लगा।
विदा किया था जिन यादों को बरसों पहले,
आज, फिर उन पन्नों को छू दिया,
रेत पर लिखा था कुछ,
और मैने लहरों से कहकर,
उन आखर से, फिर रिश्ता जोड़ दिया।
लहरों को छूने निकला था आज,
पर बैर उनसे ही कर लिया,
विदा किया जब किनारे को तब,
वो रेत समेटा और चल दिया,
रेत पर लिखा था कुछ,
और अब, मन मे ही समंदर बन गया।-
लहजा ऐसा रखते हैं, की सब हो जाये मुरीद,
हर घर मे बटती शीर जहाँ, मेरे भारत की है वो ईद।।-