इच्छा मेरी छोटी सी पर,
लिखनी है कविताएँ तुम पर।
मुस्कान लिखूँ जिसमें थोड़ी,
बेमेल मगर पूरक जोड़ी।
मगर समझ मुझको ना आता,
बोलो मैं क्या-क्या लिख पाता।
प्रेम लिखूँ या रूप तुम्हारा,
साथ लिखूँ या हाथ तुम्हारा।
खैर कभी फुर्सत जो पाऊँ,
लोक-लाज से समय चुराऊँ।
होकर तुम पर पूरा निर्भर,
लिखनी है कविताएँ तुम पर।-
ज़माना मछलियों का तो मगर की चाल का हूँ मैं,
“मलँग”... read more
दिसंबर का हाल न पूछो, सब कुछ लुटा के ऐंठा है,
तुम पूछोगे उम्मीद है क्या, जनवरी बता के बैठा है।-
भला अफ़सोस करने से कहाँ कोई जीत पाता है,
नए कुछ काम की सोचें दिसम्बर बीत जाता है।
सभी कुछ जनवरी पर छोड़ हम दो जून तकते हैं,
मगर अफ़सोस का तन्हा दिसम्बर गीत गाता है।
तुम्हारी तुम बताते हो हमारी हम बताते हैं,
मगर ये ख़्वाब सा लगता दिसम्बर जमता जाता है।-
किसी ने ये कहा था कल गुजरती शाम में मुझसे,
तुम्हारे बिन चमकता चाँद थोड़ा बुझ सा जाता है।-
उजाला तेरी यादों का हमारे दिल में बसता है,
अँधेरा दूर करने को मगर दीपक जलाता हूँ।-
प्रवृति जल की मुझे अक्सर प्रभावित खूब करती है,
किसी का रंग ले लेती कई आकृति बदलती है,
हुई हल्की बनी बादल जमा हो तो बरसती है-
किसी को मुक्ति देती है किसी की प्यास बनती है।-
निगाहों से बयां होती कहानी पढ़ रखी सबने,
छिपाया जो ज़माने से वही तुमको बताता हूँ।-
तुमको जो पसंद हम भी वही बात करेंगे,
तुम दिन को कहो रात हम भी रात कहेंगे,
तुम जो भी कहो बात तेरी मान जाएँगे-
पागलों से बहस हम भला क्या ख़ाक करेंगे।-