Abhinav Singh   (अभिनव सिंह "सौरभ")
325 Followers · 146 Following

read more
Joined 6 March 2018


read more
Joined 6 March 2018
14 DEC 2024 AT 8:12

उस का लिक्खा नहीं बदलेगा, लोग कहते हैं,
अपने ज़ज्बे से बदलते भी, हमने देखा है।

एक अरसे बाद वो मिले, मिल के क्या बोले?
कहीं तो आपको पहले भी, हमने देखा है।

एक ठोकर क्या लगी, रिश्ते उछल के गिर पड़े,
कई अपनों को बदलते भी, हमने देखा है।

दौलत सुकून है या फिर सुकून दौलत है?
बड़े महलों को सुलगते भी, हमने देखा है।

©️ अभिनव सिंह

-


15 MAY 2023 AT 12:18

उम्मीदों के सभी कमरे, स्याह,अंधेरे,काले हैं
महज़ तुम एक खिड़की हो, जहाँ अब तक उजाले हैं

जो मुझसे रश्क़ रखते हैं, सफ़र भी देख लें मेरा
मेरे पैरों में काँटे हैं, मेरे हाथों में छाले हैं

जितना छोड़ आते हो, किसी दावत की थाली में,
कितनों के तसव्वुर में, बस उतने ही निवाले है

-


15 MAY 2023 AT 12:18

उम्मीदों के सभी कमरे, स्याह,अंधेरे,काले हैं
महज़ तुम एक खिड़की हो, जहाँ अब तक उजाले हैं

जो मुझसे रश्क़ रखते हैं, सफ़र भी देख लें मेरा
मेरे पैरों में काँटे हैं, मेरे हाथों में छाले हैं

जितना छोड़ आते हो, किसी दावत की थाली में,
कितनों के तसव्वुर में, बस उतने ही निवाले है

-


15 MAY 2023 AT 12:14

ज़ाविये ज़िन्दगी के बदल जायेंगे
तुमको पाकर मेरे गम बहल जायेंगे
थाम लो हाथ ग़र तुम ज़रा प्यार से
लड़खड़ाये हुये हम सम्भल जायेंगे

-


8 NOV 2022 AT 18:13

पनघट से बिछड़ी नाव चली,अब जाने कौन से ठाँव चली
लहरों का रेला आ-आकर
जीवन का राग सुनाता है
मन के तट पर स्मृतियों के
कुछ मोती रख कर जाता है
तट तो केवल ठौर समय का
हर नाव को जल में जाना है
जीवन क्या है? जन्म-मरण के
पथ पर क्षणिक ठिकाना है
अंधेरों में खो कर किरणें
अपने-अपने धाम चलीं
पनघट से बिछड़ी नाव चली,अब जाने कौन से ठाँव चली
तरूओं की डाली-डाली पर
मधुमासी यौवन छाता है
उपवन का मनहर स्वरूप
सबके नयनों को भाता है
किन्तु समय की आँधी में
पत्ता-पत्ता गिर जायेगा
जीवन के मधुमय बसंत में
भी यह पतझड़ आयेगा
वृक्षों का श्रृंगार लुटा तो
छोड़ के उनको छाँव चली
पनघट से बिछड़ी नाव चली,अब जाने कौन से ठाँव चली

-


4 NOV 2022 AT 10:45

कब तक मानवता शान्ति हेतु जीवन का मोल चुकायेगी,
क्या युद्ध बिना इस धरती पर शान्ति नहीं आ पायेगी।

-


25 OCT 2022 AT 16:41

रोशनी जिनके जीवन में आयी नहीं
दीपमाला जहाँ जगमगायी नहीं
जो विवशता लिये मुस्कुराते रहे
और अँधेरों में आँसू बहाते रहे

थोड़ी खुशियाँ, थोड़ा प्यार ले जाइये
एक दीपक वहाँ भी जला आइये

देहरियाँ जो हैं सूनी बिना अल्पना
बह चुकी जिनकी आँखों से सब कल्पना
भाग्य जीवन में काँटे उगाता रहा
पीर देकर हमेशा रूलाता रहा

थोड़ी करूणा, थोड़ी प्रीति ले जाइये
एक रंगोली वहाँ भी बना आइये

एक दीपक वहाँ भी जला आइये

-


15 OCT 2022 AT 6:56

थोड़ा सा इठला कर आया
थोड़ा सा बहला कर आया
दूर गगन से धीरे-धीरे
सबका मन सहला कर आया
प्यासे होठों पर पानी का अर्घ्य चढाने आया चाँद
देखो कैसे प्रेम का उत्सव आज मनाने आया चाँद

चलनी के पीछे दो आँखें
आशाओं के पुष्प सजा के
पुण्य मिलन का दीप जलाये
निर्निमेष अम्बर को ताकें
दो अर्द्धों को जोड़ धरा पर पूर्ण बनाने आया चाँद
देखो कैसे प्रेम का उत्सव आज मनाने आया चाँद

सौभाग्यों की पुण्य कामना
जिह्वा पर बस एक प्रार्थना
व्रत,पूजन सब साधन भर हैं
प्रेम ही अंतिम सत्य साधना
अभिलाषाओं पर स्वीकृति का सिंदूर सजाने आया चाँद
देखो कैसे प्रेम का उत्सव आज मनाने आया चाँद

नारी का सौभाग्य अमर हो
बिन्दी, कुमकुम, सुहाग अमर हो
त्याग की देवी के जीवन में
उत्सव का अनुराग अमर हो
बन के महावर आज सुखों का रंग लगाने आया चाँद
देखो कैसे प्रेम का उत्सव आज मनाने आया चाँद

-


14 MAR 2022 AT 11:34

इस जगत के चन्द प्रश्नों ने रची कैसी कहानी

जिनके हाथों पर कभी पावन प्रणय दीपक धरे थे
जिनके स्वप्नों में हजारों रंग खुशियों के भरे थे
वन के पथ पर देख उनको राम पत्थर से खड़े थे
राज्य की कर्तव्यनिष्ठा प्राण देकर थी निभानी

इस जगत के चन्द प्रश्नों ने रची कैसी कहानी

जानकी जिसमें जली माना बहुत दाहक अनल थी
किन्तु जिसमें राम झुलसे वह तो उससे भी प्रबल थी
एक राजा के ह्रदय में प्रेम की धारा विकल थी
चाहकर भी बह न पाया राम की आँखों से पानी

इस जगत के चन्द प्रश्नों ने रची कैसी कहानी

सागरों पर सेतु बाँधा, अनगिनत सेना जुटाई
जिनके हेतु राम ने थी स्वर्ण की लंका जलाई
त्याग उनका ही किया यह काल की कैसी ढिठाई
राम को ही राम होने की पड़ी कीमत चुकानी

इस जगत के चन्द प्रश्नों ने रची कैसी कहानी

-


7 MAR 2022 AT 6:59

प्रीत राधा से लगाई, रुक्मिणी से की सगाई
बोलो कान्हा यह अनोखी रीति तुमने क्यों चलाई
(अनुशीर्षक में)

-


Fetching Abhinav Singh Quotes