आज हवा में नमी ज़्यादा है ,
सुनो , तुम रो रहे हो क्या ?
क्या ढूँढते हो सेहरा में ?
रेत खो गयी है क्या ?
औऱ कहाँ जा रहे हो छुड़ा कर बाहें आधी रात ?
देर हो गयी है क्या ?
अंधेरे जितना उजाला भी होता है ,
तुम सिर्फ़ रात में देखते हो क्या ?
खिलौने आते हैं बाज़ारों में , लेते क्यूँ नहीं ,
तुम सिर्फ़ दिलों से खेलते हो क्या ?
उसने मना किआ है , क्यों नहीं मानते ?
"ना" समझ में नहीं आता क्या ?
सिनेमा तीन घंटों में ख़तम हो जाता है ,
तुम्हें इसमें और ज़िन्दगी में फरक नज़र नहीं आता क्या ?
दूसरों की ज़रूरत क्यों पड़ती है तुम्हें ?
तुम्हें ख़ुद ख़ुश रहना नहीं आता क्या ?
क्या सबकी सुनने में पड़े हो ?
तुम्हें ख़ुद की सुनना नहीं आता क्या ?
हंसी में चीखें छुपा क्यों लेते हो ?
तुम्हें रोना नहीं आता क्या ?
दहेज़ की बातें चल रहीं हैं तुम्हारे घर पर
तुम्हें ख़ुद कमाना नहीं आता क्या ?
अपनी अपनी हवाएं चला रहें है सब
किसी को देश चलाना नहीं आता क्या ?
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