इस उदासी की कहानी,
है ज़हन में भी मेरे,,
इस छुरे को कब चुभाया,
वक्त बंज़र ने मेरे,,
लौट के न आउंगा मैं,
इस गली में अब कभी,,
ज़ख्म गहरे भी जुड़े हैं,
इन हवाओं से मेरे,,
क्यूं सुकूं की बात तुम,
करते हो मुझसे इस कदर,,
जब सुकूं की बेरूखी है,
मेरी इस मुस्कान से,,।।
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