Abhinav Mishra   (अभिनव मिश्र)
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Joined 29 March 2020


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Joined 29 March 2020
28 AUG 2023 AT 10:18

बेवजह ही सही रूठना भी ज़रूरी है
कौन अपना है ये जानना भी ज़रूरी है..!
पल भर में सिमट जाते है सांये सर से
जंग खुदकी खुद लड़ने जाना भी ज़रूरी है..!
बूँद बूँद इश्क़ से कुछ होता नहीं
एक उम्र में इश्क़ में डूब जाना भी ज़रूरी है..! बेशक़ खुश रहो दिनभर तन्हाई में
कभी आंसू बहाना भी ज़रूरी है..!
होगी सूरज में रौशनी तुमसे ज़्यादा
आज जुगनू का किरदार निभाना भी ज़रूरी है..! जब आएगी मौत तो मरना ही होगा
पर मरने से पहले जी जाना भी ज़रूरी है..!
जिसे कहती है गलत काम ये दुनियां
कभी कभी उन्हें कर जाना भी ज़रूरी है..!
बेशक गुरूर ना करना जो मिला है उसपर
कभी कभी हासिल ज़िन्दगी पर भी ज़रूरी है..! रिश्तों के तार तोड़ मोड़ दो चाहे तुम
पर जनाज़े में आने वाली तादाद बढ़ाना भी ज़रूरी है....! हार जाओ हर दफ़ा चाहे तुम गैरों से, एक रोज़ मगर ख़ुदसे जीत जाना भी ज़रूरी है...!

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16 FEB 2023 AT 23:22

इस उदासी की कहानी,
है ज़हन में भी मेरे,,
इस छुरे को कब चुभाया,
वक्त बंज़र ने मेरे,,
लौट के न आउंगा मैं,
इस गली में अब कभी,,
ज़ख्म गहरे भी जुड़े हैं,
इन हवाओं से मेरे,,
क्यूं सुकूं की बात तुम,
करते हो मुझसे इस कदर,,
जब सुकूं की बेरूखी है,
मेरी इस मुस्कान से,,।।

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16 JAN 2023 AT 8:55

तुम सिर्फ एक बूँद पाकर फूल गए हो
क्या समुद्र के अस्तित्व को भूल गए हो?
जीवन में चले हो तुम जिसे पाने को
मिलेगा अवसर जरूर उसे भुनाने को
निरन्तर चलने वालों की राह सरल है
जो ठहर गए तो अमृत भी गरल है
ठीक नहीं केवल स्वप्न को ढोते रहना
जरूरी है कर्मभूमि पर कुछ बोते रहना
अद्भुत कहानियां वे लोग ही गढ़ते हैं
जो एक इंच हररोज आगे बढ़ते हैं
भ्रमित मनुज को ही ऐसा सब दिखता है
वरना कौन किसका भाग्य लिखता है?
जो कर्तव्यपथ से च्युत हुआ वो पातक है
आलस्य में कल की प्रतीक्षा घातक है
शाम सूरज फिर उसपार उतर जायेगा
उम्र के घड़े में एक बूँद जल और भर जायेगा
मत रुको कर्मयज्ञ में आहुति चलने दो
अंतस में जल रही है आग तो जलने दो
लोग थक हारकर रास्ते में ठहरेंगे
कष्ट के बादल उन्हीं के लिए घहरेंगे
जब हवाएं आपका रुख नहीं मोड़ पाती है
तब हर पगडण्डी सफलता की ओर जाती है
दिन बीत रहे है मित्र फिर क्या बचेगा
पश्चाताप का सिर्फ हाहाकार मचेगा
अपने तामस व्यवहारों को अब भी रोक दो
अब खुद ही बन अनुशासक खुद को टोक दो
तुम सिर्फ एक बूँद पाकर फूल गए हो
क्या समुद्र के अस्तित्व को भूल गए हो?
✒️डॉ अर्जुन सिंह साँखला

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6 NOV 2022 AT 7:27

when you improving
yourself then you think
that the change of your
life is suddenly in action
but this is not the way of
truth, only yours brain think
so do only your doings and
leave on your brain which
he do and god help us..

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6 NOV 2022 AT 7:21

अभिलाषाओं के झंझावात से
हृदय की लहरें टूट गयीं
फिर नदियों की इन धाराओं से
अंदर के तल भी भीग गए
सागर के दूधी मोती भी
तलवटी में दबकर टूट गये
कुछ भावों के संकेतों ने
तंत्रों को भी झकझोर गये
स्मृतियों की गहराई से
बेदना की आग जलती है
अभ्युदय की तकरारों ने
गर्तों के द्वार भी खोल दिए...


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19 OCT 2022 AT 13:56

जब अपने मन की सुनोगे
अपने दिल की करोगे
तब ना किसी के निर्णय मायने रखेंगे
ना किसी की प्रतिक्रियायें
फिर परिवर्तन सहज होगा बिल्कुल और
यह सब विपरीत और कठिन परिस्थितियों से
गुजरते हुए होना है।।

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14 SEP 2022 AT 16:36

है मृत्यु हमें मंजूर वही!!
जो अपनों से हो दूर कहीं!!
ना नरक चतुर्थी का डर हो!!
ना हमें स्वर्ग की आशा हो!!
है दूर खड़ी वह धुंधली सी!!
शक्ति या कोई पथ दर्शक है!!
उसके ही मृदुल आहटों ने!!
चित्रित स्मृति को दूर किया!!
चल अडिग छोड़ आडंबर को!!
पा लिया लक्ष्य अपने मन को!!
बन विप्र वासना त्याग दिया!!
हो गया विजित समाधि को!!

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29 AUG 2022 AT 12:27

कमजोर कहां 'पृथ्वी' कब था!
कमजोर तो उसकी नब्जें थीं!
जो उलझ गईं उन जालों में!
जो मकड़ी बुन 'अपनों' ने थी!
फिर भी वह हारा कहां कब था..!!
रख तलवारे उस गर्दन पर!
'गोरी-जयचंदों' ने खेल किया!
उसकी ही सम्प्रभुता पर!
उसके अपनों ने चोट किया!
फिर भी वह हारा कहां कब था..!!
बाहर से टूटा कभी नहीं!
पर रोया वह अंदर से था!
उसके ही समक्ष 'मां-मातृभूमि'!
उसके अपनों ने बेच दिया!
फिर भी वह हारा कहां कब था...!!

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5 FEB 2022 AT 10:04

हे मातु तुम देवी नहीं,
माता मेरी अपनी ही हो!
हर क्षम्य अवगुण दूर कर,
कर क्षमा मुझको गुण दिया!
अपनी ही शक्ति से तूने,
भंडार ज्ञान का भर दिया!
क्या है किसी वस्तु की कीमत,
इस जहां में इससे भी!
संसार भी कर जीत ले,
है इतनी शक्ति इसमेें जो!
हर मर्ज की तो यह दवा नहीं,
पर फिर भी दवा जरूर है!
इसको हर कोई वैद्य न जाने,
जाने सिर्फ फकीर है!
पूछ लो कीमत उससे इसकी,
जो मल आया, गया स्वर्ग के नूर है!
इसकी धारा कभी न रुकती,
जाती दूर अनंत है!
जो तेरी माया को समझें,
इस जग का वह संत है!
हे मातु................!
#मां #सरस्वती पूजन #बसंत पंचमी
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏— % &

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6 JAN 2022 AT 18:52

हारा भी,टूटा भी..
हारा, टूटा पर रुका नहीं
संघर्ष किया.. तब जग जीता
पग रखे बिना ही धरती पर,
बोलो किसने उड़ना सीखा..
जीवन तेरा अधिकार करो
न व्यर्थ समय बर्बाद करो
एक दिशा चुनो और जुट जाओ
प्रेरक जीवन तैयार करो
कदम सुदृढ़ हैं हर पथ पर
दुर्बल तो अपनी सोच से तुम हो
क्या यूं ही थे, जो अब तुम हो...
क्या यूं ही थे, जो अब तुम हो।।
#संदीप द्विवेदी

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