यूँ जुल्म ओ सितम करना ज़रूरी नहीं है
आपका हर वक़्त इतना खूबसूरत लगना ज़रूरी नहीं है
लोग तो मर जाते हैं आपकी सादगी पे
आपको कातिलाना अदाओं की कोई ज़रूरत नहीं है
गले सब से मिलना ज़रूरी नहीं है
आपका इतना मिलनसार होना भी ज़रूरी नहीं है
सब आपकी तरह शरीफ़ नहीं होते
हाथ मिलाने आये हर शख़्स को गले नहीं मिलते
कोई कितना भी दिल-ओ-अज़ीज़ क्यों न हो
ये दौर हर किसी पे विश्वाश करने का नहीं है
यहाँ किसी को तुम्हारी फिक्र नहीं है
दिल के ज़ख्म की नुमाइश की ज़रूरत नहीं है
तमाशा बन जाओगे 'कातिब'
यूँ बाजार-ए-मोहब्बत में बिकने की ज़रूरत नहीं है-
कभी फुर्सत मिलेगी तो कहेंगे
अभी तो दोनों ही मसरूफ हैं जिंदगी के ... read more
हिन्दू मुस्लिम हिन्दू मुस्लिम हिन्दू मुस्लिम हर तरफ यहीं शोर है
अरे बस कर ये हिन्दू मुस्लिम कुछ तो मुल्क का ख्याल कर
नरेंद्र मोदी और ओवैसी मत बन
भगत सिंह बन
अशफाकउल्लाह खान बन
राम प्रसाद बिस्मिल बन
चंद्रशेखर आज़ाद बन
अब्दुल कलाम बन
जिसने दी है आज़ादी मुल्क को अपनी जान के बदले
कुछ तो उनका सम्मान कर
कुछ तो मुल्क का ख्याल कर
कुछ तो मुल्क का ख्याल कर!-
मैं प्रेम के लिए भटकता रहा और जब वो मुझे मिला तो मैंने उसे ये कह कर जाने दिया कि हममें कोई समानता नहीं है और हमारी जाति भी अलग है दोनों के घरवाले नहीं मानेंगे ।
पर वह प्रेम में हर संघर्ष के लिए तैयार थी, मैं नहीं था!
प्रेम कायरों के लिए नहीं है और शायद इसीलिए मैं पूरी जिंदगी प्रेम को नहीं पा सकता
मुझे अनन्त काल तक प्रेम के लिए भटकना है क्योंकि जब प्रेम मुझे बाहें फैलाये अपने पास बुला रहा था तब मैंने उसका तिरस्कार किया था समाज और जाति जैसी तुच्छ चीज़ों के डर से!-
टूट कर बिखर गए हैं हम
ऐ यार देख तेरे इश्क़ में क्या से क्या हो गये हैं हम
इतनी बेरुखी नहीं थी अपने लहजे में
ये तेरी तल्ख बातों का असर है
हम तो तुझको अपनी जान जान कहते नहीं थकते थे
ये तो तुम थे जो हमको एक नज़र उठा के भी नहीं देखते थे
तेरी महफ़िल छोड़ के आखिर जाना ही पड़ा मुझे
न जाते तो तेरी ये बेरुखाई मारती मुझे
तुमसे मिलना खाब था की हकीकत मालूम नहीं
तुझसे बिछड़ कर ऐसे उठे तेरे दर से जैसे कोई सपने से निकलें हो अभी अभी
इश्क़ का खुमार अब उतार गया है मुझसे
लौट आये हैं हम वापस अपने घर में
तुम खुश रहो ये आखरी मुलाकात थी अपनी
तेरी गली का ये आखरी फेरा था अपना
मेहफिल तो तेरी भी उदास हो गयी होगी
तेरे लब पे जो दबी दबी मुस्कान रहती थी वह भी खो गयी होगी
तुम आना अबकि मेरी गली हम नज़रें बिछाए तेरा इंतज़ार करेंगे
मेहबूब से कैसे मिलते हैं ये तुझको सिखाएंगे
अपना तो इश्क़ में जो होना था वह हो चुका
तेरे संग भी ऐसा न हो इसलिए तुझे इश्क़ की बारीकियां बताएँगे
तुम आओगे किसी दिन अपना दिल हार कर तब तुझको इश्क़ समझायेंगे
टूटे दिल के साथ कैसे जीते हैं ये हुनर तुझको बताएँगे
मेहबूब का इंतज़ार लाज़िम है के नहीं ये तुझको तय करना शिकायेंगे
तुम आना अबकि मेरी गली हम तुझको इश्क़ करना शिकायेंगे-
औरत को बहुत कुछ लिखा गया बहुत कुछ समझा गया
पितृसत्तात्मक समाज में जो नहीं समझा गया वो ये कि औरत भी पुरुष की ही तरह एक जीवित प्राणी है।-
करूँ मैं भी सबसे प्रचंड युद्ध या यूँ ही हार जाऊं
कायर कहलाऊं या मैं भी विश्वविजेता कहलाऊं
सत्य असत्य की सोचूँ या युद्ध की सोचूं
बतलाये कोई रणछोड़ बनूं की रणविजय बनूं?
युद्ध से किसका भला हुआ ये सैनिक से पूछूं या राजा से पूछूं या पुछूं उस बूढ़े माँ बाप से, उस विधवा से पूछूं या उन मासूम बच्चों से पूछूं जो अपने बाप को खोज रहे
कौन कहेगा सच मैं किससे पूछूं?
कितना भयावह होता है युद्ध का होना
ये बात हथियारों के सौदागरों को कैसे समझाऊं?
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गुलाबी गुलाबी फरवरी में मेरे नाम एक गुलाब आया है
आज उस पगली का गुलाबी खत आया है
खत में उसने सिर्फ अपने जज्बात ही नहीं भेजे हैं,
उसने खत में खुद का एक हिस्सा भी भेजा है
इस खत में सिर्फ लिखाई ही नज़र नहीं आया है,
मुझे तो उसका चेहरा भी नज़र आया है
गुलाबी खत में उसका गुलाबी गाल नज़र आया है
खत का गुलाबीपन मेरे चेहरे पे उतर आया है
खत को पढ़ते पढ़ते मेरा चेहरा भी गुलाबी हो गया है
गुलाबी गुलाबी फरवरी में मेरे नाम एक गुलाब आया है
आज उस पगली का मेरे नाम खत आया है!— % &-
मुझे अपनी हदें पता हैं मैं यूँ ही किसी का दामन नहीं थामता
तुम्हें किसी और से मोहब्बत है ये जानता और समझता हूँ मैं औरों की तरह अपना प्यार किसी पे नहीं थोपता— % &-
गरिबों के अंदर जो भूख की आग है वह सब कुछ जला कर राख कर देगा
इस तानाशाही को भी जड़ से उखाड़ फेंकेगा
संविधान पर जो काले बादल छा गए हैं
फिर से कोई भगत सिंह कहीं से आएगा
इंकलाब की बागडोर थामे फिर से कोई बागी आएगा
जितने भी सितम कर सकते थे,
तुमने वह सब कर लिया अब मुफ्लिशों के सब्र का बांध भी टूटेगा
बन कर जनसैलाब इंक़लाब फिर से इस देश में आएगा
इस तानाशाही को भी जड़ से उखाड़ फेंकेगा
इस तानाशाही को भी जड़ से उखाड़ फेंकेगा
सावरकर को पूजनेवाले
भगत सिंह के वंशजों को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे
जिनको कल तक तिरंगा फहराने से भी परहेज़ था
आज सबको तिरंगे के नाम पर मार रहे
बहुत हुआ बहुत हुआ अब और ज़ुल्म नहीं सहेंगे
अपने भारत को दूसरा जर्मनी नहीं बनने देंगे
हम फिरसे एक बार इंक़लाब लेकर आएंगे
इस देश में फिरसे इंकलाब लाएंगे
इस तानाशाही को भी जड़ से उखाड़ फेकेंगे
इस तानाशाही को भी जड़ से उखाड़ फेकेंगे— % &-
बहुत कुछ हो सकता था
हम दोनों को ही प्यार हो सकता था
तुम मुझसे कुछ वक़्त पहले मिली होती
तो तुझसे दिल का हाल बताया जा सकता था
रकीब का जिक्र अगर न किया होता तुमने
तो अपनी कहानी को भी एक अलग मोड़ दिया जा सकता था
दो लोगों के बीच किसी तीसरे का आना बड़ा गुनाह है
पर तेरे लिए ये गुनाह भी किया जा सकता था
तुम मेरी हो सकती हो इसका जरा भी अंदेशा होता
तो अपने नसीब से भी लड़ा जा सकता था
तेरे लौटने की कोई उम्मीद तो वैसे भी नहीं थी
पर खुदको झूठी तसल्ली दी जा सकती थी
तुमने अलविदा तो कहा ही नहीं कभी
सो तुम्हारा इंतज़ार अब भी किया जा सकता था!— % &-