बाहर रौनक़े लागये बैठें है , मुर्शाद
अंदर से कब्रास्तान है हम ....।।।-
Allahabadi
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बाहर रौनक़े लागये बैठें है , मुर्शाद
अंदर से कब्रास्तान है हम ....।।।-
एक उम्र है , जो बितानी है, उसके बगैर ,
और एक लम्हा है, जो मुझसे गुजारा नही जा रहा-
अधूरी मोहब्बात मिली तोह नीद भी रूठ गयी।
गुमनाम जिन्दगी थी , कितनी सुकून से सोया करते थै
अब हर वक्त बस टेंशन ही टेंशन कितना वक्त होगया सुकून से सोया हुए क्या थै ,क्या होगये हम ।-
इधर मै घर वालों को मना रहा था,
और उधर घर वालों की मान चुकि थी ।
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Milna tha Ittefaq
Bichhadna Naseeb tha ,
Wo itni Dur ho gaya,
Jitna kareeb Thai...
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I killed my own happiness in such a young age , by loving someone more then myself..
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Khud hi ruthe,
Khud hi mann gaye,
Yehi hi haqeeqat hai,
Jaan gaye...!!
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