Abhinav Ghosh   (Abhinav Ghosh Anku)
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Once loved.
Insta -: @abhinavanku
Joined 24 February 2017


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31 MAY 2022 AT 12:30

यूं आहिस्ता से ना मुझको अब तमाम कीजिए
मेरे निगाह में आप अहद-ए-सुबह-ओ-शाम कीजिये।

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12 JAN 2022 AT 13:39

बीमार हूँ अल्फाज़ से बेबाक़ नहीं हूँ
हैरान हूँ ग़ुस्ताख से अग़्यार नहीं हूँ

करता रहुँ अपना भला वो‌ पीर नहीं हूँ
मैं सुबह पे एक दाग़ हूँ मै रात नहीं हूँ

कर दूँ बयान-ए-ज़ख्म का सफ़्फ़ाक नहीं हूँ
नादान हूँ बुज़्दिल सा हूँ, बरबाद नहीं हूँ

अहद-ए-वफ़ा से हिज़्र तक बेबस पड़ा हुआ
मै आग हूँ, मै हफ्तों का आज़ार नहीं हूँ।

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27 DEC 2021 AT 10:18

अशर्फीयों की आस में वो रुह को‌ जला रहे
हाथ खून से सने, कदम न लड़खड़ा रहे।

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24 NOV 2021 AT 16:29

दुनिया सिमट गई और मै हद से गुज़र गया
बाहर से ज़िन्दगी मिली, अंदर से मर गया।

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21 AUG 2021 AT 16:30

उशशाक़

हाए उल्फ़त है के बेवजह हीं जले जाते है
कहाँ को निकले थे कहाँ को चले जाते है

न फिक्र है न होश है लहु के जलने कि मुझको
ज़रा सी मौत में रुककर फिर जीने को चले आते है

काफिले से काफिरों कि तरह निकाले गए हम
उम्र सर्फ करने को अब मय में ढले जाते है

है बज़्म मे आलम-ए-तनहाई मेरी हमनशी
है ख़ाक में तेरी वफ़ा दरिया मे सारे नाते हैं

दहलीज़ पे यादें तेरी कदमों के कई साए हैं बिखरे
उशशाक़ थे हम इस बात पे आँखों को मले जाते है |

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17 AUG 2021 AT 23:46

हसीं देख कर मैं अब यूँ मचल जाता हूँ
देखूँ खुश जो ज़माने को, मैं जल जाता हूँ,
उनके आये से जो आती है नमी आँखों में
है ये दिल कि खता की, मैं तो‌ पिघल जाता हूँ।

न मैं दुश्मन हूँ ज़माने का गलत मत समझो
जो है ये ज़िन्दगी मैं उसको जीये जाता हूँ,
कोइ‌ अब सर्फ करे लाख ज़ूबां के पत्थर
ज़ुर्म-ए-मुहब्ब्त में आशिक हीं अब कहलाता हूँ।

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3 AUG 2021 AT 15:48

रिश्तों को देखा है बरबाद होते हुए
ख़्वाबों को‌ देखा है‌ ख़्वाब होते हुए,

देखा है उम्मीदों के टूटते तारों को
न देखा तो‌ इश्क़ का इंसाफ़ होते हुए ।

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28 JUL 2021 AT 23:06

उस घर से निकलूँ किस तरह
जो घर कभी अपना सा था?

चुभता है हाँ वो आज पर
कल वो मेरा सपना सा था।

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14 JUL 2021 AT 21:25

न घर में, शहर में, सफर में नहीं हूँ, न मुझमें न तुममें भटकता कहीं हूँ,
मैं रातों में खोया, उजालों से भागूँ, अंधेरों में ढूंढो मैं रहता वहीं हूँ ।

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9 JUL 2021 AT 22:07

उम्मीद कि, शिकवा किया देखा बदल कर रास्ता
खुद से हीं कहता फिर रहा मैं अपने दिल की दास्तां,

भटका मैं कू-ए-यार में देखा नहीं उनको मगर
बस बंद आँखों में है वो ऐसे है‌ टूटा वास्ता ।

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