Abhinav Bharti   (Abhinav)
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Joined 14 April 2020


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Joined 14 April 2020
14 JUL 2023 AT 2:43

ना जाने कितनी बेचैनी इस शहर में समाया है आज
फिर भी कैसे चैन की नींद सोया है ये आज ?

पर क्या ही जाने ये समाज मेरा
फिर से ईश्वर को खोया है ये आज ।।

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15 JUN 2023 AT 20:37

नए ख्वाब थे , पुराने की ही तरह
मिल ना पाए तुम उसी अनजाने की तरह

सपने जैसे तुम और उसको ये चाहे दिल
जब मालूम है मुझे कोई सपने नही है मेरे

ना जानें क्यों देख लेता हूं सपने तेरे
जब टूटे तो टूटे थे कई बार ये सपने मेरे

ये दिल करता है ढेरों सवाल मुझसे
कैसे बताऊं उसे की वो अपने नही है मेरे

अब शिकायते भी क्या करूं खुद से
जब सपने ही अपने नही है मेरे ।।

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11 JUN 2023 AT 0:30

खुबसूरत आंखों से दर्पण में खुद को टटोलती वो
कभी अपने लंबे बालों को खोल कर कभी बांधती वो

दर्पण में खुद को आजाद देखती है वो
शायद समाज की खींची लकीरों से पहली बार निकलती वो

ना जाने खुद में क्या देखती वो
मानो जैसे खुद में ही पुरा जवाना देखती हो

महसूस कर पाए कोई उसकी खूबसूरती को
शायद कोई ऐसा दीवाना देखती वो ।।






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24 MAY 2023 AT 11:49

बेशक लाख कमियां हो मुझमें
सुधारने की कोशिश ना करू तो बताओ
चाहने वाले तो मिल जाएंगे आपको कई
कोई दुआओं में मांगता हो तो बताओ

तुम नहीं तो चांद से ही बातें कर लेता हूं मैं
थोड़ी सिफारिशें और शिकायतें कर देता हूं मैं
तुम नहीं तो आपके ख्यालों में ही रह लेता हु मैं
ना चाहते हुए भी खुद को तकलीफ देता हूं मैं



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24 FEB 2023 AT 20:46

फिर से शाम होने आई हैं
साथ अपने कुछ तो लाई है

जीवन नहीं हैं एक सब के लिए
सब के लिए अलग गीत लाई है

कर्म किया जिसने सच्चाई से
उसके लिए तो सिर्फ सुकून लाई है

वो देखो परिंदे भी लौट आए हैं
मिलने को अपनों से शायद थोड़े उकताए हैं

जो ना कर पाए अपना कर्म अगर
तो निश्चय ही अंधियारी छाई है

ख़ुद के मन से ठान लिया हो युद्ध अगर
खुद से युद्ध में कहां किसी ने जीत पाई हैं।

नया सवेरा फिर से एक मौका लाई है
उम्मीदों की किरणे फिर से साथ लाई है ।।

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25 JAN 2023 AT 1:10

आंखों में ना जाने सवाल कई
पर खुद में समेटे जवाब सभी
चंचल मन की सागर आप
हो सागर से भी गहरी आप

कभी शांत तो कभी उग्र
उन सागर की लहरों सी आप
साहिल क्या ही जान पाए जज़्बात सभी
तो भला डर कर क्यों ठहरी है आप ?

हां सागर से भी गहरी आप
सागर से भी गहरी आप ।।






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19 DEC 2022 AT 19:23

ना जाने कितनों को भाता है

आपकी बस एक दीदार से
चांद भी खुश हो जाता है

मन के सोए ख्वाब निराले
फिर जुगनू की तरह टिमटिमाता है

चंचल मन की सागर आप
दिलो में प्यार के गीत ये गाता है ।

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15 AUG 2022 AT 15:21

जब जब पुकारे ये मिट्ठी तुझे
तो वतन की मिट्ठी पर मिट जाना

हो इरादा मजबूत इतना,चट्टाने भी थम ना सके
सरफरोशी की तमन्ना दिलो से तुम्हारे कम ना सके

बस तिरंगे की बढ़ती अब मान रहे
इससे बड़ी क्या सम्मान रहे

हां अमरो में मेरा भी नाम रहे
कायम भारत का स्वाभिमान रहें

दिलो में सबके प्यार रहे
भारत हमारा गुलज़ार रहे ।

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15 AUG 2022 AT 15:19

जात धर्म की बेड़ियाँ तोड़ो
अपनो में अब बंटना छोरो

फुट डाल कर राज किए वो
क्यों अब भी उनके काज करे

चलो अब हम साथ चले
हाथो में रख कर हाथ चले

जब दुश्मन ने ललकारा हमको , इन्कलाब का राग लिए
लड़ते लड़ते वतन पर प्राण त्याग दिए

ना जाने कितने मतवाले है वो
खूनो से आजादी को सिचां है

जब आ जाए मुश्किलें कभी
तो अपनो ने ही अपनो को खींचा है

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29 MAY 2022 AT 0:57

सफर के डगर में मिले कोई मुसाफिर आप सा
तो फिर ढूंढे उसे दिल तो वो लगे सिर्फ ख़्वाब सा ।


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