🌸 ज़िंदगी कहानियों का घर है 🌸
ज़िंदगी कहानियों का घर है,
हर मोड़ पर एक नया सफ़र है।
कुछ किस्से रंगों से भर जाते हैं,
कुछ लफ़्ज़ आँखों को नम कर जाते हैं।
जो पन्ने हँसी के संग लिखे गए,
वो दिल को सुकून दे जाते हैं।
पर जो दर्द के रंगों से सजे रहे,
वो आज भी यादों में डराते हैं।
हर कहानी अलग-अलग सही,
पर हर कहानी में रोशनी छिपी कहीं।
रोज़ कुछ नया सिखा रही है,
कहानियाँ ज़िंदगी दिलचस्प बना रही है।
ज़िंदगी कहानियों का घर है…-
Hame Shayri likhna aur padhna dono hi pasand hai .
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तिलझ उठा मैं एक दिन,
कब्र की ठंडी छाँव से,
जहाँ चैन तो था,
पर ना थी कोई आवाज़, ना ही पहचान।
जीवन की कड़ी धूप ही
शायद ज़्यादा सच्ची थी,
जहाँ हर दर्द में धड़कन थी,
और हर ठोकर में कुछ सीख बाकी थी।-
उन्हें समझना मिटटी को था ,
मगर वो पत्थरो में हाँथ टटोलते रहे .
जब छालों से हाँथ जल उठा
तो बोल पड़े ,
मिटटी बहुत निर्दयी है ,-
एक जंगल है जहाँ खो जाने को मन करता है ,
एक शहर है जो बुलाता है बार बार .
एक में गहरा सन्नाटा है ,
एक में दुनिया भर का शोर..
इसी उधेड़ बुन में हूँ की सुकून कहा मिलेगा ,
दोनों में खुद को खो देने का डर है.-
वो ख़ुश था
मकां किसी गैर का जलाने के बाद..
फिर पागलो सा रोया है
वो पल खुद पे गुज़र जाने के बाद.
वो नादाँ है भूल जाता है
कर्म के खेल को,
उसे फिर याद आता है,
वक़्त पलट जाने के बाद..-
ये शहर खुशनुमा है,
मकां मेरा जलाने के बाद..
फिर पागलो सा रोता है
वो पल खुद पे गुज़र जाने के बाद ..
वो नादाँ है भूल जाता है
कर्म के खेल को,
उसे फिर याद आता है,
वक़्त पलट जाने के बाद..-
तुम कौन देश से आए पंछी,
तुम कौन देश को जाओगे,
बहुत कमाया इन शहरन में,
जोहे घर की डेहरी,
रहा ताके है मइया तोरी,
कहे डाकिया से रो-रो क़े ,
लिखो डाकिया...
लल्ला मोरे घर कब आओगे..?-
मैं बैठा हु मुंडेर पे , थका हरा ..
अरे पगले कौओं, मैं बाज़ हूँ..
अभी अपनी उड़ान का मुझको तेवर मत दिखाओ..
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