Abhilash Gajbhiye   (अभिलाष गजभिये)
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टूटा हुआ शीशा समझो हमें,
चाहो तो देख कर सवार लो खुदको,
चाहो तो चुभा लो।
Joined 3 May 2019


टूटा हुआ शीशा समझो हमें,
चाहो तो देख कर सवार लो खुदको,
चाहो तो चुभा लो।
Joined 3 May 2019
13 MAR 2023 AT 15:50

बोम्मन, बेल्ली और रघु को
ऑस्कर नही पता है।
नाही जिंदगीभर खटपट खटपट
करके लकड़ी को आकार
देने वाले किसी सुतार को पता है
उसकी खटपट की आवाज से
किसी प्रकार का संगीत होता है।
लोगों को बोम्मन, बेल्ली, रघु,
और सुतार नहीं चाहिए
लोगों को चाहिए बस
ऑस्कर।

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8 DEC 2022 AT 15:16

गुलदस्ता

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15 AUG 2022 AT 16:50

कैदी हम दोनों

दिल के पिंजरे में यादों का कबूतर रहता है।
टूटे दिल के टुकड़ों पे पलता है नम आंखों से पीता है।
कैसी आबो हवा में रहता है क्या खाता है क्या पिता है।
आदमखोर ये धीरे धीरे दिल को कुतरता रहता है।
मजबूर नही है शौकीन भी नहीं है फिर क्यों रहता है।
कैसा कैदी है दरवाजा खुला है फिर भी बैठा रहता है।
दिल में जहर भी तो ना रखा हमने किसी के लिए
होता तो अच्छा होता ये मर जाता कितना सताता रहता है।
मेरी फिक्र का क्या कोई मेरा अजीज़ नहीं जमाने में
क्यों कोई दाना दिखाकर इसे बाहर नहीं बुलाता है।
मैं इसे दफ्न कर दूंगा कह नहीं सकता
यह मुझे दफ्न कर देगा डर लगा रहता है।
दिल के पिंजरे में यादों का कबूतर रहता है।

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30 JUN 2022 AT 18:07


हमे इल्म न हो हम तनहा कितने अकेले हैं।
हम अब महफिलों से अक्सर मुकर जाते है।

मेहसूस न हो वो दर्द दिल के तड़पने का
हम घर जब भी जाते है थोड़ी सी पीकर जाते है।

वो गलियां वो कूंचे वो बागीचे वो रेस्टोरा
हम तेरे शहर में अब सबसे बड़ी दूर से होकर जाते है।

तेरी यादों के तूफानों से सैलाबों से भागते छुपते इधर उधर से
फिर एक जरासे हवा के झोंके से पल में बिखर जाते है।

बेसूदी बेपरवाही में निकलते है वापस लौटे न लौटे
हम अब घर से निकलते हैं तो सबसे मिलकर जाते है।

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5 JUN 2022 AT 0:28

आसमां को धरती से मोहब्बत हो ऐसे
पहली नज़र का प्यार हो जैसे।
न हवा चले ना बिजलियां कड़के
बस मौसम बने और बेइंतहा बारिश बरसे।।

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8 MAY 2022 AT 14:32

ईश्वराच्या भक्ताची परम ईश्वर भक्ती
आईच्या प्रेमाची सर त्यालाही नाही.
काय असावं आईच्या प्रेमाचं रसायन
काहीही घडलं, बदललं तरी
तिच्या प्रेमावर का कोणतीच
कसलीच अभिक्रिया होत नाही.
आई इतकी स्वार्थी ती आईच
आणि काय तिचं सार स्वार्थ तर तिची मुलं.
शुद्धता आणि पावित्र्यासाठी स्वीकृत अशा
कित्तेक गंगा आईच्या ओल्या पदरातूनच वाहतात.
पदरधारिनी आईचा पदर कधी ऊब देतो कधी सावली
कधी तो पाळणा होतो तर कधी रुमाल कधी टॉवेल.
आईला तिचा स्वतःचा श्वास असतो का शंकाच वाटते!
मुलांच्या चिंता, गरजा, गैरसोयी घेणे हेच तिचे श्वास त्यांचे
सुख,सोयी, सुविधा, चैन, सांत्वन हे सारं तिचा उच्छवास.
आईची आयुष्भर आत्महत्या सुरूच असते.
ती मुलांच्या आयुष्याचं मळा फुलविते
स्वतःच्या जीवनाचं रान तर कधी वाळवंट करून.
आईच्या ममतेच्या गाभाऱ्यात ऊर्जेचे स्वयंभू स्त्रोत असावेत.
अमर्याद आणि अक्षय.
विश्वाच्या उत्पत्तीचे सगळे गूढ एकदाचे उकलता येतील
पण आईच्या अपार ममत्वाचे रहस्य शोधणे अशक्यच आहे.
मानसशास्त्राची मजल आईच्या हृदयाला
तिच्या काळजाला वेधूच शकणार नाही.
निसर्गाच्या अशा समीकरणांच्या
समीकरणात आई बहुदा अपवाद असावी.
वात्सल्याचा, ममत्वाचा, निस्वार्थतेचा नैसर्गिक अधिवास
म्हणजे फक्त आणि फक्त आईच असावी.

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29 APR 2022 AT 12:52


मुझमें कुछ आधुनिकता है और कुछ प्राचीनता। वैसे तो मुझे दोनों पे फक्र महसूस हुआ करता था। पर अब धीरे धीरे मै मेरी प्राचीनता से ऊब गया हूं। प्राचीनता मेरे लिए मुसीबत बनकर खड़ी हो चुकी हैं। इस आधुनिकता में बहूत थोड़ी या फिर कुछ भी नही प्राचीनत बची होगी। ऐसेमे मेरी प्राचीनता अकेली है बिल्कुल निर्जन। मुझे एहसाह है की वो पवित्र है, भली और अच्छी। उसके सहारे मै अपने अंदर जीता रहा हूं। मै इसे आधुनिकता से बदल देना नहीं चाहता क्योंकि मेरी प्राचीनता मुझे मनुष्यता के समीप बरकरार रखती है। पर यदि मैं ऐसा करता हूं तो यह मेरी विवशता होगी। शायद खुदकी हत्या एक पुनर्जन्म के लिए। ये काफ़ी मुस्किल होने वाला है, शायद मैं ऐसा ना कर पाऊं पर मुझे यकीन है कि आधुनिकता से भरी दुनिया मुझे हौसला देगी, प्रोत्साहित करेगी। जिससे शायद मेरा काम आसान हो जाए।

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27 JAN 2022 AT 8:29


मैं भारतवासी
मैं नागरिक हूं
मेरे पास आधार कार्ड हैं
मैं मतदाता भी हूं
पर मैं इस गणतंत्र का
" गण " नहीं हूं।
" तंत्र " का साधन मात्र हूं।

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27 JAN 2022 AT 8:19


मैं भारतवासी
मैं नागरिक हूं
मेरे पास आधार कार्ड हैं
मैं मतदाता भी हूं
पर मैं गणतंत्र का
" गण " नहीं हूं।
" तंत्र " का साधन मात्र हूं।

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24 NOV 2021 AT 22:49


तेरे दिए दर्द ओ सितम का ये कहर था।
तुझे ये लगना की मेरे तुझे दिए पानी में ज़हर था।
ये जान कर मेरी रूह बहुत शर्मिन्दा है।
पता कर की क्या तेरा दिल जिंदा है।
मेरा तो जिंदा रहना अब मसला लगता हैं।
तेरा बढ़ता दिल से फासला लगता हैं।
वे हया बे इंतेहा चाहा था तुझे।
तुझे दुआ है तुझे पता चले
ये दर्द क्या है ये कैसा लगता है।

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