कोई नज़रों से ऐसे उतरा है,
मेरे सपनों का मनका बिखरा है.
रातदिन,सुबहोशाम,8पहर; चौघड़ियां;
संभालता हूँ ये दिल उजड़ा है!
बहुत उम्मीदें आदमी को डुबो देती हैं,
यहां मझधार नहीं, पैर तेरा फिसला है.
हम नये सफर पर अब फिर ना निकल पाएंगे,
बीच रस्ते पर अपना एक यार बिछड़ा है!
अब ना फिर लौटकर घर जाने का मन होता है,
जिसपर दावा करते, गांव पूरा हिस्सा-बखरा है!
हर कोई छोड़ दे तो मां करीब होती थी,
वो गयी दूर, सांस रूंधने का खतरा है.
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