अभिजीत   (अभिजीत जनार्दन)
1.0k Followers · 1.4k Following

Associate Producer @aajtak
फाॅलो बैक का वादा रहा..!
Joined 13 February 2017


Associate Producer @aajtak
फाॅलो बैक का वादा रहा..!
Joined 13 February 2017
11 JUL AT 3:38

सोच रहा, जहां पहुंच गया; जिसकी भित्तियों तक घुस गया.,
क्या यही प्राप्ति थी? सही मार्ग की दीप्ति थी.
या कोई और पथ भी है। सारथि और रथ भी है?
मेरी आकुलताओं के अनुकूल, निर्दिष्ट का मूल!!
जिनपर कभी चला नहीं, बढ़ा, रुका, लड़ा नहीं.
अगर आज वहीं होता, तो ये व्यवधान नहीं ढोता.
तो क्या पथ बदल देने भर से; आज से बेहतर कल से.,
खत्म हो जाती बेचैनियां, समय की मनमानियां.
आत्ममंथन की विधियां अपना ली, अपनी ही गलती मान ली.
लेकिन नहीं ढूंढ़ पा रहा वो सिरा; जहां पर मेरा स्वाभिमान गिरा.
जहां कहा गया बेकार, आरोपों को नहीं कर पाता स्वीकार.
या मैं एक तर्क तलाश लूं, खुद को यूं ही बेहतरीन मान लूं!
या समय की प्रतिकूलताएं; जीवन की जटिलताएं.
चाह रही कुछ और? बीतेगा ये दौर.!
समझ न पाया निजताएं, जला रहा सिर पर समिधाएं.
जनता के कष्ट में कराहता; सरकार पर माला निहारता.
अस्तित्व के द्रुमों को रोपता, धाराओं के खिलाफ लहर खोजता.
कहां चला आया हूं अकस्मात! थोड़ा हो उदास और हताश.
कहां जाना चाहिए था? बर्बर समय को ठहर जाना चाहिए था!

-


8 JUL AT 15:28

अगर तुमने बचाने के बजाय मिटाने को चुना हो,
अगर तुम्हें शांति से ज्यादा सहज लगती हो जंग;
भीड़ के अनाचार में लाभ देखा और काम किया हो.
किसी का धर्म, जाति, भाषा देखकर मदद की हो;
तो सुनो, तुमने इंसान बनने के सारे मौके गंवा दिये हैं!!

-


29 JUN AT 4:30

पिता ने दुनियादारी सिखाने के-
अथक प्रयास किये, पर सफल ना हुए.
बताते रहे; "हर चीज़ का एक स्थान होता है,
जिसे जहां से उठाओ; दोबारा वहीं रख दो!"

खेत सींचते पिता दोहराते रहे,
"पानी मेड़ के बल पर;
ढलान से बढ़ता है ऊपर की ओर;
इसलिए मेड़ को करते रहो मजबूत."
किसी नजदीकी का पता बताते समय;
दाये बाए ना कहकर;
उत्तर और दक्षिण बताकर-
कराते रहे दिशाओं का ज्ञान.

मां इन सबमें नहीं फंसी,
हर गम पर खुलकर हंसी!
पिता के सभी उपक्रम; बेकार गये.
मां ने जैसा चाहा, जीवन की धार में हम;
वैसे ही बहे.

लेकिन आज जब, एक अजीब मोड़ पर आये हैं;
जिंदगी के मीनार भहराये हैं;
तो पिता के सबक- अच्छी तरह याद आये हैं।

-


26 JUN AT 8:30

एक दिन ढला फिर, शाम को;
वो शख्स याद आ गया.
पटरी पे चलती जिंदगी को;
छोड़ मैं भहरा गया.

ये कैसी वीरानी है? जहां रास्ता नहीं!
अपने ही सरायों से, कोई वास्ता नहीं.
लगती है सड़क दूसरी, या मोड़ अलग है.
उन सिलसिलों का रास्ता, और ठौर अलग है.

बेशक कोई गुमराह हो, पर उसकी खबर है.
उस शख्स के मेयार पर, अब मेरी नज़र है!
रोके ना कोई रास्ता, अलमस्त गगन में,
उड़ना है मुझे शौक से, यादों के कफन में.

बस बचता एक रास्ता, कि भूल जाऊं सब?
पर धड़कनें तो कह रहीं, वो सबसे बड़ा रब!!

-


16 JUN AT 13:01

किताब बच गई,
और इंसान जल गये;
कहानी का स्वधर्म रीत गया,
फिर एक बार धर्मवाद जीत गया.
#Ahmedabad

-


29 MAY AT 11:17

एक दिन अचानक लगेगा कि सारी गंभीरताएं बेकार हैं,अधिकार की लड़ाई लड़ते थक जाओगे.लेकिन जो आदत संघर्ष ने दे डालें,वो नहीं छूटेगा.वही तुम्हारे पुरुषार्थ को पालेगा,जब तक कि तुम नश्वर नहीं हो जाते!क्योंकि ईश्वर ने विकल्प अविनाशी होने का दिया और तुम मोहजाल में ही फंसे रह गये.

-


22 MAY AT 21:14

मुझे सुकून ना दे मुकद्दरां,
अब दर्द से एहतिराम है!
ये फिजूल की हैं महफिलें,
मुझे पसंद अपना वीरान है.
सब कर रहा वही एक तो,
हम सभी क्या ठहरे अमान हैं.
मुझे बख्श ना देना जिंदगी,
मुझे मौत पर भी गुमान है.
हम नज़र भर उम्मीदों को तकते रहे,
चांद था, रात थी; ख़्वाब का था असर.

-


20 MAY AT 11:28

दिल दरिया है!
बहता हूँ मैं.
अपना किस्सा कहता हूं मैं?
श्रृंगार गगन करता जिसका,
मन घिरता है उस बादल सा.
बरखा उमड़ी है आंखों में;
जीवन बाकी बस श्वासों में.
मानों बातें ज्यों रेत पड़ीं,
कुछ जश्न मना, कुछ धूल उड़ी.
पर प्रश्न नहीं बस उत्तर है?
जीवटता तो कोलाहल है!!
हम उम्मीदों को तकते रहे भर नज़र,
चांद था, रात थी; ख्वाब का था असर.

-


20 MAY AT 11:20

दिल दरिया है!
बहता हूँ मैं.
श्रृंगार गगन करता जिसका,
मन घिरता है उस बादल सा.
बरखा उमड़ी है आंखों में;
जीवन बाकी बस श्वासों में.
मानों बातें ज्यों रेत पड़ीं,
कुछ जश्न मना, कुछ धूल उड़ी.
पर प्रश्न नहीं बस उत्तर है?
जीवटता बस कोलाहल है!!
हम उम्मीदों को तकते रहे भर नज़र,
चांद था, रात थी; ख्वाब का था असर.

-


13 APR AT 13:46

आज जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी है. साल 1919 में 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में अंग्रेज़ों ने नरसंहार किया. बैसाखी के दिन रौलेट एक्ट के खिलाफ सभा आयोजित हुई थी, जनरल डायर ने हजारों लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया, नतीजतन 400 लोगों की जान चली गई. हम आज भी उसे सोचकर व्यथित होते हैं, जनरल डायर जैसे लोग., जिनमें इंसानियत नहीं होती. आजादी के बाद भी इस देश में मौजूद हैं. जिन्हें आम लोगों के जीवन से कोई मतलब नहीं. उन्हें लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करने की आदत है. उन्हें बेनकाब करने की जरूरत है. जिनकी नीतियों से पिछले तीन दशक में हजारों किसानों ने आत्महत्या कर ली. जिनकी नीतियों से आंदोलन करने वाले सात सौ किसानों की जान चली गई. वे लोग भी जनरल डायर से कम नहीं हैं. जिनके चलते बेरोजगार युवा दर दर की ठोकरें खा रहे हैं, वो भी अंग्रेज़ी हुकूमत से कम नहीं. महंगाई के चलते दो जून की रोटी जुहाने में जो अक्षम हैं, वो आजाद भारत में भी आर्थिक गुलामी ही तो झेल रहे हैं. इस देश को आगे बढ़ना होगा, हर तरह की गुलामी से जीतना होगा. आजाद होना होगा.

-


Fetching अभिजीत Quotes