तुम गुनाहगार कहो,
मैं गुनाहगार बनने को तैयार हूं।
तुम करों विवाह सरकारी से,
मैं एकाकी रहने को तैयार हूं।-
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काश पानी ही बन बह गए होते,
पत्थर बन ना रह गए होते।
भाप और बदल बन,
गधेरों से निकल,
समुंदर मे खो गए होते।-
चाय और मेरी बातें,
अक्सर हो जाती है।
गम और दर्द भुलाने को,
चाय छलकायी जाती है।-
जिंदगी एक आईना है, उसे देखता ही कौन है।
सब देखते है दूसरे का चेहरा, अपने पर सब मौन है।-
लोकतंत्र की सरकार,
समांतर सरकारों से हारी थी,
धरे रह गए कायदे कानून,
जब उन्होंने सड़कों पर,
भीड़ उतारी थी।
अहिंसा की तख्ती,
कश्मीरी हिन्दू पर भारी थी।
कटती लाशों पर,
अहिंसा परमो धर्म की लाठी भारी थी।
पुलिस प्रशासन मौन रहा,
लोकतंत्र भी धृतराष्ट्र बन,
नरसंहार को पलायन बोल रहा।
गंगा जमनी तहजीब की लाशे,
किसने झेलम में उतारी थी।
लोकतंत्र की सरकारें,
समांतर सरकारों से हारी है।
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जब बच्चा सवाली हो जाए,
तो हर किसी को नही भाता।
आदर्श पुत्र राम तो सबको चाहिए,
आदर्श पुत्र नचिकेता को पूछा नहीं जाता।-
सिद्धांतो की अपेक्षा,
प्रयोगात्मकता और व्यवहारिकता जरुरी है।
सिद्धांत किताबों में और उपदेश देने में अच्छे लगते है।-
रास्ते अपने बनायेंगे हम,
कल्पनाओं में तो बहुत कुछ आ रहा है।
लेकिन कैसे लिख दूँ उन्हें मैं,
जब वास्तविक जीवन में उतर नही पा रहा है।
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