ये सूरज चाँद सितारे फूलों की महक मेरी सरकार तुम्हीं से है...कल कल करती गंगा का पानी पवित्रता से भी ये भी सरकार तुम्हीं से है शबरी के झूठे बैरो का स्वाद तुम्हीं से है..पत्थर को चुनने से अहिल्या बन जाना सब सरकार तुमही से से है....
ये सूरज चाँद सितारे फूलों की महक मेरी सरकार तुम्हीं से है...कल कल करती गंगा का पानी पवित्रता से भी ये भी सरकार तुम्हीं से है शबरी के झूठे बैरो का स्वाद तुम्हीं से है..पत्थर को चुनने से अहिल्या बन जाना सब सरकार तुमही से से है....
क्या तुम आज भी आँखों में वो काज़ल लगाती हो क्यों काज़ल लगाकर मुझें अपनी अदाओं का दीवाना बनाती हो क्या आज भी तुम वो छोटी सी घड़ी कलाई पर सजाती हो मुझे मिलने के समय देकर खुद ही भूल जाती हो