♥️कितना खूबसूरत अपनी यारी का आगाज है♥️
तू खास है तू पास है तेरा दिलकश अंदाज है,
कितना खूबसूरत अपनी यारी का आगाज है
तेरी आंखों में जो शरारत है ,
तेरी मासूमियत अमानत है ,
तू खुद में खुद की जान है,
तेरा बेबाकपन ही तेरी शान है,
तेरे लहजे में एक खुशबू है,
मंजिल है दूर पर पहुंचने की जुस्तजू है,
तुझे समंदर में गोता भी लगाना है ,
तुझे आकाश के पार भी जाना है ,
तेरे अंदर एक मासूम सी लड़की है ,
तेरे अंदर उमंग की आग भी भड़की है ,
तू सच मान तू दिल से बहुत ही सुंदर है ,
तेरे अंदर एक गहरा समंदर भी है ,
तुझे नहीं पसंद तुझ पर कोई हक जताए ,
तू है आजाद खुश रहें और हमेशा मुस्कुराए ,
तेरी इसी मुस्कुराहट पर तो मुझे नाज है ,
कितना खूबसूरत अपनी यारी का आगाज है
तेरी आदत सी लग रही है मुझे ,
जिसको खोजता था दिख रही है मुझे ,
वो हंसती है तो कलियां भी मुस्कुराती है ,
इठलाती है तो चिड़िया भी चहचहाती है,
वो रूठती है तो बादल भी यूं गरजता है ,
वो आगोश में होती है तो बच्ची सी बन वो जाती है ,
तेरी छुअन तो अब अपनी सी लगती है ,
तेरी आंखों से नजाकत भी यूं ही झरती है,
अपनी मुलाकात का अलग ही अंदाज है
रब ने मिलाया दोस्त बनाया कुछ तो बात है
तुझे देखकर पॉजिटिव वाइब्स भी आती हैं
तेरी आवाज दिल को सुकून दे जाती है
तेरी आवाज में सातों सुरो का साज़ है
कितना खूबसूरत अपनी यारी का आगाज़ है
© अभिज्ञान मृदुल-
एक नई सुबह फिर आएगी
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है वक़्त फ़कत मुश्किल वाला, राहें भी ये आसान न है,
गुलज़ार जो था ये मुल्क मेरा, इक काला सा साया जो है,
दुख के बादल छटने होंगे, कलियाँ फिर से खिल जाएंगी,
सहमे सहमे से चेहरे पर खुशियाँ फिर से मुस्काएँगी,
अंधकार को मिटा उम्मीद की किरणें जब जगमगाएंगी,
एक नई सुबह फिर आएगी, एक नई सुबह फिर आएगी
©अभिज्ञान
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हे प्रथम!!
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हे प्रथम! तुमसे निवेदन हर लो तुम संताप अब,
भूल हमसे जो हुई हो कर दो हमको माफ़ अब,
है जहर फैला ये बेशक़ दुनिया में हर ओर ही,
बच नहीं पाया मनुज जो फैला है हर छोर भी,
गिड़गिड़ाता है मनुज अब धो दो सारे पाप भी,
जो किए है मानवों ने मानवों पे आप ही,
प्रकृति को छेड़ा तो उसका फल भी मिल गया है सब
भूल हमसे जो हुई है माफ़ कर दो हमको अब
हे प्रथम!...............................
पाप का है अब घड़ा जों भर गया था आप ही,
रंग रूप ऊंच नीच और जाति धर्म ही हर कहीं,
हम हुए निष्ठुर जो मारा पेट में नवजात भी,
हम हुए पापी की खुद भी बन गए थे स्वार्थी,
गिड़गिड़ाता है मनुज दोहराएगा ना अब ये सब,
भूल हमसे जो हुई है माफ़ कर दो हमको अब
हे प्रथम!...............................
हे प्रथम! तुमसे निवेदन हर लो तुम संताप अब,
भूल हमसे जो हुई हो कर दो हमको माफ़ अब
©अभिज्ञान-
शाम ने बर्फ़ पहन रखी थी रोशनियाँ भी ठंडी थीं
मैं इस ठंडक से लिपटकर अपनी रूह से मिलने निकल पड़ा
और उस सफर में मुलाक़ात हुई अल्फाजों के मुकम्मल दस्ते से
और फिर आग के आगोश में इस दस्ते की गरमाहट से आगाज़ हुआ गज़ल का
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चांद
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कल जब तेरा यूं ख्याल आया,
वक़्त की पाबंदियों में इंतज़ार छाया,
गुज़रे लम्हों की याद में था कि अचानक,
मेरा चांद मेरे चांद में नजर आया,
ये सुर्ख झलक और काली घटाओं का मंजर था,
तू तो नहीं पर तेरा अक्स हर सितम भर था,
कल खुश था बहुत चांद यूं मुस्कुराने लगा,
खुश होकर मुझे तेरा हाल यूं बताने लगा,
की कोई दिन रात याद करता है,
तुझमें जीता है तुझमें मरता है,
जल्दी से ये इंतज़ार होगा ख़तम
तेरा चांद तेरी आगोश में होगा नम,
बस चांद को उस रोज अकेला ना पाया
मेरा चांद मेरे चांद में नजर आया..
मेरा चांद मेरे चांद में नजर आया..
©अभिज्ञान
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तेरी डोर अब तेरे हाथ है,
खोया था जो तेरे साथ है,
है फिकर क्यूं यूं बेवजह,
मुड़ना नहीं जो किया फैसला,
अब तो जिद भी है और राह भी
जग जीतने की चाह भी
तू निकल पड़ा लिए हौसला
काबू में है अब फासला
अब आसमां छूने की बारी है
डोर थामने की जिम्मेदारी है-
ये नज़ारा जो आंखो में समाया है अभी,
दूर क्षितिज पर सुर्ख नज़र आया है अभी,
लहरों की अठखेलियां भानु का आगाज़ तो देखो,
अपने अस्तित्व में होने का इक अंदाज तो देखो,
देखो ज़रा समुंदर भी मुस्कुराता है,
देखो ज़रा सूरज भी तो इठलाता है,
जिंदगी जीने की सीख मिली है अभी,
मदमस्त मुस्कुराओ मौका मिले जब भी कभी
© अभिज्ञान
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देश के स्वर्णिम भविष्य का अभिमान है ये,
इसरो के वैज्ञानिकों का सफल अनुमान है ये,
पूरे दुनिया ने आज लोहा माना हिन्दुस्तान का,
देश की आन बान शान द्वितीय चंद्रयान है ये
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हम ही तो कल इतिहास लिखेंगे
तेरी मेरी सबकी बात लिखेंगे,
हम ही तो कल इतिहास लिखेंगे।
सूरज के रथ हम चलेंगे जरूर ,
हाथ जो बढ़ाएंगे तो चंदा नहीं दूर,
सूखे बादलों पर बरसात लिखेंगे
हम ही तो कल इतिहास लिखेंगे।
हौसले की नैया अब दिए हैं उतार,
हमसे किनारा नहीं पूछो रे मल्हार,
बहती नदी पर कोई बांध लिखेंगे
हम ही तो कल इतिहास लिखेंगे
©नीलोत्पलमृणाल
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एक छोटा-सा लड़का था मैं जिन दिनों
एक मेले में पंहुचा हुमकता हुआ
जी मचलता था एक-एक शै पर मगर
जेब खाली थी कुछ मोल ले न सका
लौट आया लिए हसरतें सैकड़ों
एक छोटा-सा लड़का था मै जिन दिनों
खै़र महरूमियों के वो दिन तो गए
आज मेला लगा है इसी शान से
आज चाहूँ तो इक-इक दुकां मोल लूँ
आज चाहूँ तो सारा जहां मोल लूँ
नारसाई का जी में धड़का कहां?
पर वो छोटा-सा अल्हड़-सा लड़का कहाँ?
©इब्ने इंशा
नारसाई=असमर्थता-