रात काली थी नींद की तड़प मे आँखे भी मतवाली थी ।
मे बिस्तर पर लेता था सुकून की नींद सुलादे कह कर तकिये को चूम बैठा था-
बस अब उसकी यादों के नाम अपनी जिंदगी कर दु
दिन गुजरता हे इंतजार ए रात मे ओर सुकुन भरि निन्द् की तलाश मे ।
पर ये राते मुझे रुलाती बहुत हे क्या दुश्मनी हे इसे मेरे सुकून से जो ये अकेलापन याद दिला कर सताती बहुत हे ।
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मेरी खामोशी से बड़ा मेरा कोई नशा नहीं
माना जिंदगी मुझसे खफा हे पर अभी मे जिंदगी से हुवा खफा नहीं-
अकेला हूं फिर भी मशहूर हूं में
तू अकेली मोहब्बत है फिर भी जाने क्यों दूर हूं में-
चांद तो मेरे करीब लगता है पर चांदनी अभी भी मुझसे कुछ और दूर है
अब तलक इजहारे मोहब्बत ना उहोंने किया ना हमने फिर भी हमारा इश्क जाने क्यों मशहूर है-
जिंदगी जरा मेरे पास तो आ
कुछ कहना है मुझे तू जरा कान लगा
मेरी तड़प मेरे दर्द मेरे अकेलेपन को महसूस कर
में जिंदा रहु या मर मर जाऊ जरा एक बात तो बता-
दुनिया को खुश करने चले हो पर
क्या उसकी तमन्नाओं को पूरा कर पाओगे ।
गर खुश के भी दिए तुमने कुछ लोगो को
तो क्या उनके दिए इल्जाम सह पाओगे ।-
तनहाई एक डरावना सा घर है
जिसमे अंधेरा बहुत है
कुछ यादों के दीपक है
जिनकी रोशनी से हम जिंदा है
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खुद से खुद ही ने क्या सजा पाई है ।
तुझे खुद से अलग कर अपनी हर रात तडपाई है-
हर रात यही खयाल आता कि नींद कब आएगी
पर अक्सर रात महज करवटों में गुजर जाया करती है-