बृज की गली गली मे शोर
आयो नटखट नंद किशोर
सुरत करती भाव विभोर
आयो नटखट नंद किशोर
ठुमकत चलत चारो ओर
सब कहते माखन चोर
लीला करता है चितचोर
आयो नटखट नंद किशोर
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Student
Born in ghazi... read more
जख्म गहरे है
जख्म के पीछे
अपनो के चेहरे है
जिन्हे समझे हमदर्द यही है
आज बने बैठे बेदर्द वही है
तुम्ही कहो अब
क्या यह सही है-
अपने दुःख को सीना सीखो
अब न कोई हमदर्द यहाँ है
रिश्तो मे भी पर्द कहाँ है
कहने को तो सब अपने है
सच पूछो तो लगते सपने है
टूटे ख्वाबो मे शोर कहाँ है
दुःख की कोई छोर कहाँ है
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अब क्यु न आये हे! मुरारी
रो- रो कर मैं भी तो थी पुकारी
द्रोपदी की लाज बचा ली थी
क्या मैं ना बहन थी तुम्हारी
द्वापर मे एक चीर हटाने पर
महाभारत का समर रचाया था
कलयुग मे कितनो के चीर हटे
क्या तुमको ना जानकारी थी
यदि सुभद्रा संग होता अब पाप
तब यू ही निहारते क्या चुपचाप
पत्थर की मुरत मे रह कर अब
कलयुग मे पत्थर हो गए क्या आप
बदला केवल युग ही है
हुआ द्वापर से कलयुग ही है
या बदल गए है तुम्हारे भी विचार
क्यू हुए कन्हैया अबकी लाचार
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मैं अक्सर मुकर जाता हूँ
हर किसी की हा में हा
नहीं मिलाता हूँ
बस इसलिए बुरा कहलाता हूँ
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देखकर रंगत ज़माने की
यहाँ अपने अपनो के नही
पर होड़ लगी हैं
गैरों की महफ़िल में नाम कमाने की
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माटी से पितु माटी मिली
हुआ समय विपरीत
तब जाना परिवार में
कितनी बची है प्रीत
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जंग अभी भी जारी है पर हमने कर ली तैयारी है
अब मथुरा की बारी है फिर से यूपी भगवाधारी है
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गलतफहमी के सागर में गोते लगा रहे हैं
मोहब्बत बची ही कहां है
जनाब सब अपनी हवस मिटा रहे हैं
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