नहीं जानता अब ख़ुद को भी,
कुछ इस कदर, खुद को भूल सा गया हूँ,
सबसे दूरी बेहतर है,करीब गया तो बस दाग दूंगा,
कुछ इस कदर, हो धूल सा गया हूँ।।
हाँ दिखता तो हूँ ज़िंदा, पर जिसमे ना हो तरंग ना ही खुशबू,
कुछ इस कदर,हो कागज़ के फूल सा गया हूँ।।
जो छोड़ा अपनों का हाल पूछना,तो पलट के उनने भी ना पूछा कभी,
कुछ इस कदर, अपनों के लिए हो बेफ़िज़ूल सा गया हूँ।।
कुछ इस कदर, अपनों के लिए हो बेफ़िज़ूल सा गया हूँ।।
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