शांति की अन्नंत चाह ,हो शून्य तक की एक राह।
करके दहन इस काया को, पंहुचू मै फिर वहा।
हो जहां ना कोई अपना पराया, हो वहां ना कोई मोह माया।
बस ओम की एक गूंज हो और चारो ओर बस बम शिवाय।
ना वहां कोई परिमाप हो ना ही वहां प्रमाण हो।
शुद्धता की एक इकाई बस, बम शिवाय बम शिवाय।
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भाषाएं आसान रखता हूं
शब्दों में जान रखता हूं
आप तक पहुंचे... read more
गिन गिन के तारे आसमां के सारे
ओ सांवरे मेरा यहां पर रात कट रहा है।
अब और किससे कहूं मैं किस्सा ये मेरा
तेरे सिवा मुझको कौन सुन रहा है।
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क्यूं आज अच्छा नहीं लग रहा,
पलके भारी सी है दिल भर आया है ।
रोऊ भी तो क्या फायदा ,कौन सुनने वाला है
आंसू भी गिरकर फिसुल ही हो जायेंगे।
मेरे दर्द से भला अब किसे दर्द होने वाला है।
चलो जाग जाओ अभय अब सुबह होनेवाला है।
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क्या जानना पर्वतों को कब पूजा जाएगा
जब जरूरत होगी उनको तब पूछा जाएगा।
रहो मौन ,स्थिर, शांत चित्त शिवाय सा होकर
जब विषपान का समय होगा तब पूछा जाएगा।
क्यों व्यथा समय करते हो बरबाद चिंतन में,
जब रण होगा तभी तो कृष्ण को पूछा जाएगा।
कोई नहीं सदेव साथ निभाने वाला यहां,
पहला जाएगा तभी तो दूजे को पूछा जाएगा।
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तुम सुनते ही नहीं हो ,बाहों में रहते हो
मगर धड़कन मेरी अब ,तुम सुनते ही नहीं हो।
वैसे तुम बाते बहोत करते हो, हम तुम्हे खूब जानते है ,ये वो।
पर मगर खामोशियां मेरी,तुम सुनते ही नहीं हो।
बड़ा फरेब दिखता है ,आज कल तुम्हारी मोहब्बत में।
मै तुमसे पूछने की भी कोशिश करता हूं, तुम हो की सुनते ही नहीं हो।
वहम है तुम्हारा की हम कुछ नहीं जानते,चलो जहा हो वहा खुश रहो
वैसे भी मेरी अब तो तुम ,सुनते ही नहीं हो।
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पढ़ लिया करो तुम मेरे आंखों को,
मै लबों से ज्यादा कुछ बोल नहीं पाता।
वो लोग होंगे जो इज़हार-ए-इश्क़ खूब जानते हैं,
मै तो इश्क़ में और भी कुछ बोल नहीं पाता।
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तुम्हारी लबों की ठंडक ,
सांसों की गरमाहटे,
आंखों की गहराइयां ,
जुल्फों की जालसांजिया,
इशारों की गुस्ताखियां,
मुझे सब पसंद है।
कहूं और कुछ भी
या रहने दू ,
तुम्हारी पर्दानशी अंगड़ाइयां,
मेरे तनहाई में तेरी वो परछाइयां ।
मेरे हार में भी तेरा वो मेरे कांधे पर सर,
तेरा वो मुझे खोने का डर।
सारी दुनिया हो खिलाफ
पर तेरा यू साथ निभाने का अर।
मुझे सब पसंद है।-
मुझ तक तुम अब ना पहुंच पाओगे।
मेरा कोई किनारा ना रहा।
समंदर सा गहरा हो गया हूं।
मेरे दिल में उतरे दुबारा ऐसा कोई ना रहा।-
याद रह जाते है कुछ लोग ऐसे जेहन में।
अक्सर ऐसा लगता है,भूल जाते तो अच्छा होता।
अंधेरी रातों में जब खुद के हम-नफ़स हो जाते है।
तो ऐसा लगता है ,उनसे मिले ही ना होते तो कितना अच्छा होता ।-