कर्ण
था वो बलवान और था मानुष महान,
धनुष की टंकार करती उसकी बखान।
लेकर कवच और कुंडल आया था वह,
सूर्य पुत्र और राधेय कहलाया था वह।
कुंती का लाला कहलाया सुत जाती वाला,
सहा नहीं क्या उसने छोटे भाग्य वाला।
वासुदेव सब जानते थे फिर भी रहे मौन,
भला भाग्य उसका बादल सकता था कौन?
धरातल पर जब उतरा खोया अपनी मां को,
इसमें दोष भी अगर दूं तो मैं अब किसको?
राधे ने जब पाया ये बालक रूपी वरदान,
विधाता ने दिया उसको दूध का पयान।
बालक था अज्ञानी किया अर्जित सब ज्ञान,
कर्म से अपनी दिखाया मनुष्य हैं सब समान।
शिष्य बनाया उसको भगवान परशुराम ने,
धनुर विद्या ऐसी दी महारण लगा था कांपने।
ज्ञानी तपस्वी कर्म और भुजबल का वह राजा,
दान कर्म में सबसे बड़ा था अंग का महाराजा।
जाती जाती सुनते आए मरण तक उसके कान,
होकर भी क्षत्रिय गिरने नहीं दिया सुत का मान।
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