Abhay Pratap Singh  
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Joined 14 April 2018


Joined 14 April 2018
10 JUN 2020 AT 10:34
















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22 JUN 2019 AT 9:36

चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ

खुमारियों को छोड़ थोड़ी गुस्ताखियाँ करता हूँ
परिंदों की तरह खुल के आसमान में उड़ता हूँ
चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ

हर रोज की आदतों से आज छुटकारा लेता हूँ
इकमिनानी से आज कही एक किनारा लेता हूँ
चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ

इक बहाना ढूंढ कर आज अपने पर हँसता हूँ
आशियाने का फ़िक्र छोड़ कही और बसता हूँ
चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ

बेरुखी को छोड़ थोड़ी सी अर्जियां करता हूँ
बेखुदी के साथ भी थोड़ी मनमर्जियां करता हूँ
चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ

समझदारी को छोड़ आज नादान बनता हूँ
ईमानदारी के साथ थोड़ा बेईमान बनता हूँ
चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ

कोई हरकत करके खुद को बदनाम करता हूँ
बचपन की तरह ही सबको परेशान करता हूँ
चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ

आज अपने आप पर भी एक एहसान करता हूँ
बेसुध होकर फिर से जीने का अरमान करता हूँ
चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ
सितारों के आगे जहां चुनता हूँ
चलो आज एक ख़्वाब बुनता हूँ

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30 DEC 2018 AT 10:58

☂️ अहमियत☔️

दिल चाहता है किसी पुराने, धूल चढ़े किताब सा अलमारी के किसी कोने में पड़ा रहूं
आते जाते सबकी नज़रो में तो रहूं,पर कुछ भी ना बोलू और बिलकुल मौन सा खड़ा रहूं

इतने सारे शब्दो के भण्डार सा ,परंतु सहनशीलताओ के अंबार से लदा रहू
घमंडी सा तो नहीं ,पर मेरे भी कुछ अपने सिद्धांत है इस बात पर अड़ा रहूं

हर रोज मेरे सामने कोई आकार देखे मुझे ,फिर बगल वाली किताब लेकर चला जाए
फिर भी चुप चाप देखता रहूं ये सोच के कि कभी तो किसी को मेरी जरुरत पड़ जाए

हां चाहूँ तो सबके इन्तिखाब में आ सकता हूँ पर उसके लिए मुझे अलमारी से नीचे गिरना पड़ेगा
लेकिन फिर वो मेरे आदिल बनने का क्या फायदा ,जिसके लिए मुझे इतना नीचे गिरना पड़ेगा!

पर थोड़ा डरता भी हूँ कि किसी दिन रद्दी के भाव ना बिक जाऊं पुराने अख़बार में
चलो उतने से भी खुश हो लूंगा ,कम से कम मेरी कीमत तो पता चले किसी बाज़ार में

लेकिन फिर भी मुझे एक उम्मीद है कभी तो कोई ऐसा आएगा
जो कोने में पड़ी किताब को उठाकर ,उस पर पड़ी धूल हटायेगा

बहुत ही बेचैनियों के साथ पन्नो को पलटेगा कि जिसे ढूंढ रहा था वो आखिर यहाँ मिला होगा
हां बेशक उस पुराने किताब के कुछ पन्ने फटे मिले होंगे और कुछ दीमक ने चाट लिया होगा

लेकिन फिर भी उस किताब में बहुत कुछ ऐसा होगा कि उससे बहुत कुछ मिल जाएगा
हां कुछ दिन तो उसको पढ़ेगा ,फिर जाकर उसकी की अहमियत का पता चल पायेगा

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4 JUN 2018 AT 17:24

फिर एक कोशिश की कहानी लिखने चल दिया हूँ
सहम जाता हूँ उस बात से की उम्मीद न हार जाऊ
हां कठिन है सफर लेकिन मन में ठान लिया हूँ
जिद्द तो ऐसी है की तुमको पालु या मैं मर जाऊ

सुना है तेरी गलियों में तो चुनौतियों के कंकड़ बिछे है
पर इतना तो है इन रास्तो पर मज़ा बहुत आने वाला है
मैं जानता हूँ इन चुनौतियों में ही वो गहरे रहस्य छिपे है
अब तू देख कोई तेरे इस रहस्य से पर्दा उठाने वाला है







मैं मन्नत नहीं मांगूंगा तुझ तक पहुचने के लिए किसी से
ना ही भाग्य को कोसूँगा गर देर भी हो गयी तो मुझसे
बहुत कुछ खोया हूँ तुझ तक पहुचने के लिए
अब एक हठ सा होगया है कि कब मिलना है तुझसे

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20 APR 2018 AT 17:29

किसी के उभरते सपनो के आधार है किताबें
कलम और काजग की प्यार है किताबें
सबके अलग अलग किस्सो की विचार है किताबें
किसी के पैर तक लग जाए कोई किताब तो तुरंत
चुम लेते है क्योंकि ,सबकी शिष्टचार है किताबें
बचपन में पहला अभ्यास है किताबें
माँ शब्द के बाद हर प्रयास है किताबें
जो भी कुछ बन गया ,उनको थी रास ये किताबें
जो कुछ नई बन पाया,उनकी अभी प्यास है ये किताबें
हमे तो बहुत कुछ मिला इन किताबों से,
शायद कुछ मलाल भी रह गया हो तो
मेरे जीवन की हर आँस है किताबें।.................

~ अभय

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19 APR 2018 AT 14:35

इश्क़ में बोलना नदारद सी होगयी है,बोल के भी न बोल पाना आदत सी हो गयी है,एक अकेला नैन ही तो है,जो सारी गुफ़्तगू कर लेता है,अच्छा हुआ नियत बेशर्म से सराफत सी हो गयी है।

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15 AUG 2019 AT 12:27

अपनी बहन को बहन समझे,दुसरो पर नियत ख़राब किये
माल , टोटा, कट्टो, आइटम कहके अपने को नायाब किये
ऐसी आज़ादी मिली है हमको, तो क्या ख़ाक आज़ाद हुए

जाती ,धर्म का चश्म पहनकर , हमेशा बुरे व्यवहार किये
इन सब चीज़ों से न ऊपर उठकर, कितने हाहाकार किये
ऐसी आज़ादी मिली है हमको, तो क्या ख़ाक आज़ाद हुए

खुद को बड़ा मर्द समझते,और बच्ची का बलात्कार किये
देकर मुछो पर है ताव , कहते कितना बड़ा काम किये
ऐसी आज़ादी मिली है हमको,तो क्या ख़ाक आज़ाद हुए

लड़का लड़की में भेद करकर, जाने कितने गर्भपात किये
लड़के की ख़्वाहिश में ना जाने कितनी बार ये काम किये
ऐसी आज़ादी मिली है हमको, तो क्या ख़ाक आज़ाद हुए

लोभ का है छद्म नशा सा, माता पिता पर अत्याचार किये
कितने गहरे स्तर पर गिरकर,अपने रिश्ते को तार तार किये
ऐसी आज़ादी मिली है हमको , तो क्या ख़ाक आज़ाद हुए

कब तक ऐसे रहेंगे हम सब, कितना समय हम बर्बाद किये
अब भी संभल गए हम सब तो , तो समझो कि आबाद हुए
वरना झूठी आज़ादी तो मना ही लेंगे,झूठेपन को साथ लिए

ऐसी आज़ादी मिली है हमको, तो क्या ख़ाक आज़ाद हुए

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24 SEP 2018 AT 10:20

🎭 दो चेहरे क्यूँ🎭!!!!!!

!!क्योंकि जो मैं हूँ,वो हूँ तो फिर इतनी चिंता क्यूँ
जो मैं नहीं हूँ उसके दिखावे की इतना व्यथा क्यूँ
🤔🤔..........पहले चेहरे में कुछ तो हुआ होगा
🙃🙃.........कि दूसरे चेहरे ने जन्म लिया होगा

फिर दूसरे के आते सब कुछ अच्छा लगने लगता है
मानो वो जो चाह रहा है वो सच में पूरा होने लगता है
पर पहले के मन में भी एक बात चल रही होती है
कि इस बुद्धू को कैसे समझाए, मंशा पल रही होती है

अब लग जाती है होड़,जो है ही नहीं उसे दिखाने की
वर्चस्व कैसे पैदा हो , यह बात खुद को बतलाने की
बहुत ज्यादा बहस होती है इन दोनों चेहरों के बीच में
दूसरा बोलता है कुछ नहीं रखा इस बेकार की सीख में

सब कुछ ठीक के बाद भी अचानक करवट लेती है राहें
दिखावे का असर ज्यादा नहीं ठहरा , बदल गयी हवाएं
इस दूसरे जिद्दी चेहरे ने सब उथल- पुथल मचा दिया
वर्चस्व के चक्कर में पहले का स्वाभिमान हिला दिया

लेकिन मुद्दा बस यहां पर ही नहीं ख़त्म हुआ होगा
दूसरे की गलती का जुर्माना पहले ने ही दिया होगा
क्योंकि दूसरा तो बस एक पल भर का छलावा था
पहले को भी अपने मन की इच्छा पर पछतावा था

फिर पहले ने सोचा कि एक सच का सामना ही तो था
अगर कर लिया होता तो , दूसरा चेहरा न आया होता
बुद्धू तो मैं ही था, काश अपने मन को समझाया होता

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27 JUN 2018 AT 9:32


20 MAY 2018 AT 14:18

वो बातें फिर से शुरू होंगी
वो रातें फिर से हसीन होंगी

तुम आओ तो

वो रूठना मनाना फिर से होगा
वो मीठा प्यार जताना फिर से होगा

तुम आओ तो

वो केशुओ में उलझे मेरे हाँथ होंगे
वो चुप रहकर भी सारे बात होंगे

तुम आओ तो

इश्क़ का इज़हार फिर से होगा
वो सिद्दत वाला प्यार फिर से होगा

तुम आओ तो..............

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