800 सालों की धमकी से किसको तुम डराते हो
तलवारों में शेष धार नहीं तभी जिव्हा चलाते हो
बप्पा रावल से जिनके प्राणों पर संकट आते थे
सहस्त्रों छल करके भी पद्मिनियों को न छू पाते थे
महाराणा प्रताप के स्वपन उनको रात जगाते थे
किस मुंह से वो स्वयं को शहंशाह कहलाते थे
वीर मराठों ने जिनकी गर्दन को था मोड़ दिया
दक्कन से अटक नदी तक ने था भगवा ओढ़ लिया
औरंगजेब धूर्त ने हिन्द फतह का ख्वाब जो पाला था
कोंढाणा असाध्य दुर्ग पर पड़ा तानाजी से पाला था
शंकाओं में मस्तिष्क तुम्हारा कि 800 साल राज किया
800 सालों में सहस्त्रों बार वीरों ने शंखनाद किया
मत ललकारो प्रताप,शिवाजी,सांगा की संतानों को
जाग गए तो तरस जाओगे तुम फिर कब्रस्तानों को
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शब्दों की तोप हूँ
कलम की नोक हूँ