तुम मेरी जिंदगी में एक किरदार कुछ एसी विशेष हो गईं साथ होते हुए भी ना जाने क्यों निःशेष हो गईं क्योंकि जानता मैं हूँ और समझती तुम भी हो कि मुलाकातें हमारी कुछ ही शेष रह गईं 😓😓
होता नहीं है किसी के साथ ऐसे खो रहा हूँ मैं किसी अपने को जैसे चाहत इतनी कि न जाने बताता कैसे? अपना होने पर भी लगता कभी गैरों जैसे फिसलती रेत की तरह वक्त को थाम रहा था जैसे-तैसे सब कुछ खरीद लूँगा पर एक "पल" खरीदुँगा कैसे ? चाहे जितने भी हों पैसे !!