" प्रेम संज्ञा या
सर्वनाम नही
प्रकृति की विशेषता है!!-
मोहब्बत का मारा हूं साहब
फूक - फूक कर चलता हूं।
जाते जाते तू मुड़ के फिर देख ले
दिल कहता है फिर एक दफा डूंड ले
आएगी कभी वो यही लोट के-
कलम का जादू ऐसा चलाऊंगा
जो अभी ब्लॉक कर जा रहे हैं
वही वापस लौट के आएंगे-