Abhay   (अbhay)
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Joined 21 July 2017


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Joined 21 July 2017
29 SEP 2022 AT 21:18

आओ मिलो तुम ख़यालों में मुझसे
तितली बताओ कहाँ हो कहाँ हो
बगीचे में थी अब दिल मे भी नही
ख़ैर बर्बाद हो तुम जहाँ हो जहाँ हो

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12 DEC 2021 AT 22:15

शहर के हर छोटे बड़े सख्स से दोस्ती है मेरी
बातें छुपा लेने का हुनर मुझ में अच्छा है

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5 JUN 2021 AT 0:10

सुनो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है....
बताना था कि चौराहे पे लगा वो वर्षों पुराना पेड़
कल की अंधी में गिर गया
हाँ वही पेड़ जिसको तुम हमारे रिश्तों का
उदाहरण देते थे।
खैर गिर गया तो गिर गया
पर अफसोस कुछ हिस्सा उसका ज़ख्मी हो गया
और कुछ चोरी हो गया
बाकी जो बचा है कुचला जा रहा है
पर ज़मीन के अंदर छुपी जड़ सलामत है
खैर कल तुम्हारा यार कह रहा था तुम ठीक हो।

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26 MAY 2021 AT 2:05

हम तो मोहब्बत की छोटी सी दुकान के मालिक सही हैं
बड़ी बाजारें तो बहुत छोटी चीजों के लिए जानी जाती हैं

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17 MAY 2021 AT 23:52

शिकायतें खुद से भी हैं मेरी कुछ
आख़िर आदतें बुरी भी हैं मेरी कुछ

यूँ कर लेना भरोसा किसी पे
सोच ख़राब भी है मेरी कुछ

यूँ ही नाशिहत दे देता हूं सबको
नियत बेकार भी है मेरी कुछ

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13 MAY 2021 AT 13:36

मेरा मुकाम मुझको बाट रहा है
मुझको एक जुगनू काट रहा है

इतना आसान नही है सफर मेरा
हर रास्ता मुझको डांट रहा है

मज़बूरियां जिस मंजिल पे ले आयी हैं
ये हालात मेरा सपना छांट रहा है

ये काम जो अब कर रहा हूँ मै
ये मेरी ख्वाइशों पे मिट्टी पाट रहा है

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12 MAY 2021 AT 22:11

मौत का मौसम चल रहा है भला घर से कौन निकलना चाहता है, मगर ये ज़िम्मेदारियाँ और मुझे इनका एहसास होना क्या ना करवा दें। बचपन अच्छा था या बुरा नही कह सकता पर हाँ बाहर ज्यादा देर खेलने भर से घर पे डांट पड़ती थी अब तो मौत का डर है और कोई रोकता भी नही। दुख इसका नही है कि सब अंदर है और मैं बाहर हूँ दुख इसका है कि रात होने के डर से माँ जल्दी बुला लेती थी और आज मौत का डर है और कोई टोकता भी नही। डर खत्म सा हो गया है या शायद दिल दिमाग का समझौता हो गया है कि दिल ने कह दिया दिमाग से की तू कुछ भी बोलेगा मैं मानूँगा नही।
खैर कहना और लिखना तो बहुत कुछ है मगर क्या करें काम है
अब भाई घर वालो की नज़र में बस मेरा ही तो एक नाम है
चारो तरफ से शोर हो रहा है कि कल ये मरे कल वो मरे
झूठ ही सही पर समझा रहा हूँ खुद को कि बस इसी का दाम है

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11 MAY 2021 AT 21:14

सड़क किनारे पैदल, ख़्याल कुछ पाने का
अफ़सोस आंखों में, किसी के जाने का

बैठ कर काम, रोटी कमाने का
दर्द जीने में, कुछ गवाने का

खुली आँख इंतज़ार, किसी के आने का
टूटी हुई उम्मीद, वादा निभाने का

नयी सुबह एक बोझ, कुछ कमाने का
एक अमर डर, खाली हाथ आने का

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10 MAY 2021 AT 1:01

गर सच कहूं तो मैंने असिलियत का संसार तब देखा
रख के ख़ुद पे जिम्मदारियों को घर - बार जब देखा

बचपन मे ही बचपना छोड़ने का फैसला ले लिया
सुखों को छोड़ मैंने दुखों को बार - बार जब देखा

अब यूँ ही नही मैं सिर्फ ख़ुद पे ही भरोसा करता हूँ
मन टूट गया किस्मत को पलटते हर - बार जब देखा

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31 JAN 2021 AT 10:28

मुझे उसके ख़्वाब से इतना प्यार है कि
बस चले तो सुबह में ही मैं शाम कर दूँ

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