बेटी के जन्म पर रोकर दुःख मानते हुए, बेटा हो जाए, ये लगे दुआएं मांगने।
बेटे वंश चलाएंगे, बेटियां एक दिन चली जाएंगी, संबंधी लगे ताने मारने।
एक तरफ बेटियों को नवरात्रि पर देवियों जैसे पूजा
और फिर लगे उनको दुत्कारने।
ये भी नहीं सोचा की बेटे-बेटी दोनों को जन्म दिया है, एक ही मां बाप ने।
जन्म लेते ही ठप्पा लगा दिया, पराया धन होने का संसार ने।
ये घर तुम्हारे पति का है, शादी के बाद ये कह दिया ससुराल ने।
कौनसा घर मेरा अपना है? ये पूछने के लिए भगवान को लगी पुकारने।
इच्छाएं तो बहुत कुछ करने की थी दिल में, पर खुद ही अपना वजूद लगी नकारने।
कभी उठने लगी, तो गिरा दिया पुरुष के अभिमान ने।
पर नारी तो शक्ति है, ये भुला दिया उलाहनों के अंधकार ने।
औरत भी क्या करे, बहुत बोझ डाला है लड़की होने का समाज ने।
माना की जिम्मेदारियां बहुत देकर भेजा है भगवान ने।
पर अपना अस्तित्व कुछ नहीं, ये क्यों लगी हो मानने।
चलो उठो और भर लो एक नया जोश, थोड़ा तो लगो खुद को पहचानने।
बहुत सी नारियों को पहुंचाया है अपने लक्ष्य के करीब, इसी अटूट विश्वास ने।
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