एक लेखक उतारता है
अपनी व्यथा कोरे कागज पर ,
जब उसकी व्यथा समझने वाला
उसका कोई अपना नही होता ,
और जब उसका दुख
अत्यधिक हो जाता है |
पर लेखक के उस दुख का क्या ?
जिसकी आग में वो जलता है ,
जिसे लिखने की वो
हिम्मत भी नही करता है ,
और रहता है भयभीत
इस बात से कि कहीं उसका दुख
प्रकट न हो जाए संसार के सामने
और उसे झूठी सहानुभूति के कर्ज से ,
आजीवन दबना न पड़ जाये |
_ Abha✍✍
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