क्या ख़याल पूराने हैं,
क्या लफ्ज़ चुनने हैं,
*न सोचा कभी*
*न सोच पाऊँगा…*
बस लिखता जाऊँगा
इस सफ़र के जो
*तज़ुर्बे होंगे....*-
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} Name ---:> abdul
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तेरे मर्ज से मिला वो रास्ता, आज भी अधूरा है।
अपने निशां मिटाने भी, तू लौटकर ना आए-
किसको दोष दे मुसलसल अपने गम़ का,
अपने हाल के हम ख़ुद ही ज़िम्मेदार हैं।-
भीड़ में भी तुझे पहचानने का हुनर तुझसे ही मिला है,
प्यारी सी मुस्कान देखकर हमे भी मुस्कुराने का मौका मिला है ।-
पहले तो सिर्फ़ भीड़ में ही तन्हाई का एहसास था,
अब तो तन्हाई में भी तन्हाई का बसर हैं।-
चाहने वाले तो बहुत देखे,
मगर कोई उनसा नहीं।
उनकी आँखें ही काफ़ी थी मेरा दिल चुराने को,
होश संभाला तब जाना हमने कभी उनसे अपना हाल-ए-दिल ब्यान ही न किया था।।-
कोई आसमानों से कह दो,
बरसना बंद कर दे।
यहाँ आँखों से जो अश्क बह रहे है,
कहीं सैलाब बन अपने संग सब बहाने ले जाए।।-
पहुँचू चाहे जब भी तुम्हारे पास
यकीन इस बात का है,
तुम्हारी बाहों मैं 'नींद' सुकून से भरी होगी।-
क्या बताएं इश्क़ तुमसे गहरा है,
इन आँखों पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा पहरा है।-