زندہ رہتی ہے، یہ نہیں مرتی
لوگ اُمید جس کو کہتے ہیں
ज़िंदा रहती है, ये नहीं मरती
लोग उम्मीद जिस को कहते हैँ-
حد ہوگی انتظار کی اس سے کہاں بلند
رکھ دیں نکال آنکھیں موئے دل کے ساتھ میں
हद होगी इंतज़ार की इस से कहाँ बुलंद
रख दीं निकाल आँखे, मुये दिल के साथ मैं-
ان سے ملے تو ایسے ملے اب کے ٹوٹ کر
آنکھوں سے بہتا دریا سنبھالا نہیں گیا
उन से मिले तो ऐसे मिले अब के टूट कर
आँखों से बहता दरिया संभाला नहीं गया!-
ستم کا کیا کریں ان کے ذرا غم
کئے ہیں جو بھی اپنوں نے کئے ہیں
सितम का क्या करें उन के ज़रा ग़म
किए हैं जो भी अपनो ने किए हैं-
رکاوٹ گر نہ ہو کوئی تو پھر منزل کہاں مشکل
مزہ تو تب ہی آتا ہے کہ پیچ و خم ہو راہوں میں
نوشتہ میں وفا کی داستاں ہم نے لکھی جس دم
سمٹ آیا وجودِ کرب سارا چند لمحوں میں-
रुकावट गर ना हो कोई तो फ़िर मंज़िल कहां मुश्किल
मज़ा तो तब ही आता है के पैच ओ ख़म हो राहों में
नवीशते में वफ़ा की दास्तां हम ने लिख़ी जिस दम
सिमट आया वजूद ए कुर्ब सारा चंद लम्हों में-
تمہاری جستجو میں عمر بھر صحرا نوردی کی
نہ میں مشکل سے گھبرا یا نہ کچھ سود و زیاں دیکھا
तुमहारी जुस्तजू मैं उम्र भर सेहरा नवर्दी की
ना मैं मुश्किल से घबराया ना कुछ सूद ओ ज़ियां देख़ा-
कितना हसीन खुशनुमा है मीर का यह दिन
इक साल बाद फिर दिखा है मीर का यह दिन
चौबीसवीं का दिन था मोहर्रम का माह था
साअत थी छः बजे की जो आया वह शाह था
आया है बनके घर में वह इक नूर की किरन
इस गुल की रोशनी से खिला घर का यह चमन-
عیدِ ثالث ہے غریبوں کے لئے یوم الجمعہ
جس نے بخشا ہے یہ دن اس کی ولادت ہو نہ عید-
काले गौरे मशरीक़ी ओ मग़रिबी अरबो अजम
दास्ताने कर्बला में रंग हर मोजूद है-