कर परिश्रम तू निरंतर
उत्साह बना रहे अंदर
खोज प्रगति के अवसर
मत उठ किसी को कुचलकर
मधुरता ला जीव्हिका के अंदर
मिल सभी से तू परस्पर
बनकर उभरेगा प्रतिभावान बनकर
लक्ष्य प्राप्ति से होगा जीवन सुन्दर-
थोड़ा बहुत लिखने का हुनर मैं भी सीख रहा हूँ।।
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आया राखी का त्यौहार
जो है भाई बहन का प्यार
आता है हर साल में एक बार
पर दोनों में प्यार तो रहता अपरंपार
छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होते हजार
बाद में हम समझौता भी करते अनेकों बार
एक-दूजे के बिन दोनों को लगता सूनसान घर-बार
जब सब हों परिवार के साथ मानो सारे सपने होते साकार
बहन बांधती है भाई को राखी हर बार
याद दिलाती कि भैया रक्षा करना बारंबार
एक समय आता जब दोनों ज़िम्मेदारी निभाने को होते हैं तैयार
दोनों एक दूजे से अलग होकर संभालते हैं अपना-अपना घर बार
मत रो बहना मैं आऊंगा तुझको लेने हर बार
मत कर कोई फिक्र जल्द ही खत्म होगा इंतजार
इसी त्यौहार के बहाने मुलाकात हो जाती है हर बार
बहन रोती है पर भाई भी नम आंखों से करता है दीदार
बहना,भाई का जो फर्ज़ है निभाऊंगा उम्र भर
रहमान बांदवी इस बंधन को याद करेगा संसार।-
आओ नए साल को खुशियों के साथ मनाएं,
बस मनाने के तरीके में जरा तबदीली लाएं।
गिले शिकवे भुलाकर हम सभी एक हो जाएं,
बस ये सिलसिला दोनों तरफ से निभाया जाए।
रिश्तों को सिर्फ़ सोशल तक ही न समेटा जाए,
बस हम इसको रूहानी तरीके से निभाते जाए।
एक अच्छा प्रण लेते हुए नया साल शुरू किया जाए,
नशा व गुरूर को छोड़ सबसे नरमी से पेश आते जाएं।
इस मौके पर किसी की अस्मत से खेलने पर न उतर आएं,
किसी की इज़्ज़त जिस पर कीचड़ उछालने से बाज आए।
ख़ून पसीने की कमाई को फिजूलखर्ची न बनाया जाए,
इस खर्च को बचाकर गरीबों की मदद को हाथ बढ़ाएं।
किसी के ग़म को खुशी में तब्दील करने का जरिया बन जाएं,
शायद हमारी यही अदा रब को पसंद आ जाए।
इस जहाँ में अपने किरदार से एक अच्छी ख़ुश्बू फैलाएं,
बस जो मिले वो हर इंसान आपका ही कायल हो जाए।
रहें बस इस कदर कि हमसे किसी का अपमान न हो पाए,
रहमान बाँदवी इसी तरह इस जिंदगी से कूच कर जाएं।
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लड़की
लड़की की जिंदगी कुछ आसान नहीं होती
बचपन से जवानी तक संघर्ष से लड़ रही होती।
शारीरिक उतार-चढ़ाव का दुःख भी झेल रही होती,
लेकिन हो रहे परिवर्तन को बताने से कतरा रही होती।
शादी के बाद चूल्हा-चौका ही करना जैसी बातें हो रही होती,
मायके पर तेरा कोई हक नहीं ऐसी भी चर्चा सुन रही होती।
लड़की है तुझे ज्यादा पढ़कर क्या करना ऐसा सुन रही होती,
ज्यादातर लड़कियाँ शिक्षा के आभाव में ही पल-बढ़ रही होती।
ससुराल पहुँची तो पराई लड़की है ऐसा संबोधन सुन रही होती,
लड़की मायके से ससुराल तक के सफर में कशमकश में जी रही होती।
शादी के बाद वो दो घरों में सामंजस्य बनाकर रह रही होती,
अक्सर मायके व ससुराल दोनों पक्षों की सुन रही होती।
औरत की दिनचर्या काम-काज व बच्चों में व्यतीत हो रही होती,
सास,नंद,पति व देवर के नोंक-झोंक को भी सह रही होती।
जिसने जो कहा व मांगा उसको पूरा करने के लिए तत्पर रहती,
खुद के सुख को नजरअंदाज कर सभी को ख़ुश करने में लगी रहती।
आख़िर वो कुछ समय के लिए आराम करने लगी तो भी दिक्कत हो रही होती,
आख़िर सोचो कि वो कब अपने लिए भी कुछ कर रही होती?
फिलहाल किसी की भी जिंदगी आसान होती और नहीं होती,
"रहमान बाँदवी" सोच का ये फर्क है बाकी सभी अपने किरदार को निभा रहे होते।-
पाला था उसको जिन हाथों से अब वो बड़ी हो गई,
कल तक जो अपनी थी अब वो दूसरे घर की हो गई।
है रब से दुआ उसको देना खुशियां सारे जहान की,
"रहमान बांदवी" है तेरी बेटी पर आज किसी की बहु हो गई।।-
जिसे देखो उसको सिर्फ़ एक ही ख़याल है,
वो पहले जैसा नहीं रहा इसका मलाल है।
पर क्या आपने अपने अंदर झांक कर देखा,
"रहमान बांदवी" आपका भी उन्हीं के जैसा हाल है।
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चंदा मामा हमें सितारों के साथ चमकता नजर आता है,
सूर्य प्रकाश के साथ-साथ विटामिन डी देता है।
पवन जब चलती है तो हृदय को सुकून देती है,
धूप हमें सर्दियों में आराम लेकिन गर्मी में बेचैन कर देती है।
पेड़-पौधे हमें फल व छाया प्रदान करते हैं,
फल,सब्जी खाकर हम बलवान बनते हैं।
फूल हमें सुगंध देकर मन को मोह लेते हैं,
लेकिन व्यक्ति कचरा फैला कर दुर्गंध पर जोर देते हैं।
पालतू जानवर हमें ढूध, घी आदि प्रदान करते हैं,
जिसे खा-पीकर व्यक्ति शक्ति का आभास करते हैं।
प्रकृति ने हम सभी को बहुत कुछ प्रदान करती हैं,
लेकिन व्यक्तियों ने प्रकति से बहुत छेड़छाड़ करते है।
पेड़-पौधे काटकर पक्के भवनों का निर्माण करते हैं,
आख़िर हमने ही अपने सुखी-संसाधनों के लिए ऑक्सिजन/पर्यावरण का विनाश करते हैं।
पर्यावरण बिगड़ने से ही मानसून पर प्रभाव पड़ता है,
वर्षा न होने से पानी की किल्लत व किसान का नुकसान होता है।
बाल दिवस पर हम बच्चों को यह सिखलाते,
बड़ों का आदर व प्रकृति का रख-रखाव बतलाते।
अच्छा जीवन व्यतीत करने के लिए प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं करना है,
'रहमान बाँदवी' पेड़-पौधे अधिक लगाकर पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना है।-
उसका फोन जब-2 आता है
दिल का कोना-2 बज जाता है
दिल को सुकून मिल जाता है
फोन कटने पर मायूस हो जाता है
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गर्व है कहो हम हैं भारत वाले
संसार को शून्य दिलाने वाले
अनेकता में एकता रखने वाले
जहां में अच्छी पहचान बनाने वाले
शहीदों को हमेशा याद रखने वाले
वतन के लिए जान लुटाने वाले
स्वतंत्रता दिवस को हर्षोल्लास से मानने वाले
तिरंगे को अपने दिल में बसाने वाले
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इश्क़-ए-वतन कोई इक दिन का काम नहीं,
वतन से इश्क़ के सिवा दूजा कोई काम नहीं।
(हर किसी के दिल में ऐसा हो कोई आम नहीं।)
फ़ौजी सरहद में रहे या अपने परिवार के साथ,
वतन पर कोई आँच आए ऐसा कभी सोचा ही नहीं।
जो ऐसी सोच रखे वो वतन का वफ़ादार नहीं,
वतन से इश्क़ करना है ये कोई कारोबार नहीं।
राष्ट्रीय त्यौहार मनाया फिर भी जी अभी भरा नहीं,
ताज़िंदगी वतन के लिए दिल धड़के पर हक़ अदा नहीं।
वतन से बगावत की जो बात करे उससे बुरा कोई नहीं,
दुश्मन-ए-वतन हैं जो उससे हमारा कोई ताल्लुक़ नहीं।
वतन के लिए लहू भी बहे तो हमें कोई ग़म नहीं,
हिंदोस्तां में हैं हम ये हमारे लिए फ़ख्र से कम नहीं।
मज़हब भी सिखाता है हमें वतन से इश्क़ करना,
फिर भी जो ख़िलाफ रहे उसका कोई धर्म नहीं।
जहाँ में देश, भाषाएँ व संस्कृति ये सब भी हैं कई,
"रहमान बाँदवी" लेकिन हिन्दोस्तां के जैसा कोई नहीं।-