कलम से स्याही टपका कर कागज को नूर बनाते हैं
अपने मन में भटकी बातों से दूजों की राह बनाते हैं
कोरे कितने कवी लिख कर बातें इतनी गुजर गए
शब्दों में अब जिंदा हैं जिनसे मुर्दे मुखड़े भी निखर गए
स्याही का मेल कागज से करवाते हैं
खुद को अनपढ़ कहने वाले कविता लिख कर जाते हैं
बहती स्याही और कागज , क्या खाक इनमे कुछ दम है
पानी की स्याही बनती है, कागज भी कोरे बनते हैं
लेखक के हातों में देदो क्या चमत्कार ये करते हैं
अंधकार में दीपक जैसे अनंत काल तक जलते हैं
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